Fसुदामा
चरित्र F
दोहा :-;......(1)
विनती शारद की करूँ ,, मम जिभ्या लें वास
सम्मुख श्री गणेश हो ,, विघ्न कभी न पास
दोहा :-;......(2)
बाल सखा यदुनाथ के ,, विप्र सुदामा एक
भिक्षा वृत्ति भोजन करे ,,थे दिल के वह नेक
दोहा :-;
......(3)
उनकी घरनी पति व्रता ,,नाम सुशीला जानि
रहती सदा सनेह से ,, पति चरणों सुख मानि
दुर्मिल सवैया छन्द ......(4)
घर देखि दशा हिय सोच बसा ,, किस भांति दयाल कृपा करिहै
यह फूट कठौतिहि टूट तवा,, कब लौ यदु नाथ हमें बरिहै
पति भी हमरी नहिं मानत है ,, अब बालक ले हम हूँ मरिहै
यह सोच चली वह नारि भली ,,हम जाय पती चरणों परिहै
मत्तगयन्द सवैया छन्द ........(5)
बीत गए छह मास पिया अब तंदुल चार नही घर
में है
भीख नही मिलती तुमको अब कंदुक भी तुमरे कर में है
सीख हमार हिये रख लो पिय होयि भला हरि के दर में है
नाथ अनाथन के वह नाथहि आन बसे सचराचर में है
दुर्मिल सवैया छन्द .......... (6
सिर मोर पखा जिनके पिय
है तुम बाल सखा उनको कहते
वह ईश हवे जग के प्रभु
जी फिर भी विपदा तुम क्यों सहते
तुम जाय कहो अपनी विपदा
हठ और नही मन में गहते
अब सारि किनारि नही रहती
जर झोपडि में हम है रहते
सुन्दरी सवैया छन्द ..........(7)
तिरिया हठ हार गये तब है
मन मारि चले प्रभु धाम सुदामा
नहि चाउर चार बचे घर में
हम देवहु भेटहि का अभिरामा
वह ठाकुर तीनहु लोकहि के
हम दारिद दीनहि ब्रम्ह सुदामा
नहि बात सुनी द्विज की
कछु है तुरतै लय तंदुल आयहु धाम
सुन्दरी सवैया छन्द ...........(8)
हरि दर्शन चाह भरी दिल
में मन सोचत भाग हमार जगे है
पग कंटक फूल समान लगे
अरु धूल भरा पथ बाग लगे है
बिजली कड़के नभ में जब है
द्विज लागत नैन हमार ठगे है
पहुचे करुणा निधि धामहि
को अब संकट आज हमार भगे है
सुन्दरी सवैया छन्द ............(9)
पग डोल रहे द्विज के अब
है हरि मारग होवत संकट भारी
अकुलाय रहे विपदा निज वो
मुख नाम रटे वह कान्ह मुरारी
रसना रस सूख गया सबही
चिपटी बिच तालुहि जीभ हमारी
अब आन हरो सब संकट को
घनश्याम सखा अभिराम खरारी
मत्तगयन्द सवैया छन्द ..........(10)
टेर सुनी जब बाल सखा नहि
,, देर करी
घनश्यामहि ने है
बालक रूपहि आय गयो तब ,,
बाह गही अभिरामहि
ने है
मारग से निज द्वार खड़ा
कर ,, आप
लग्यो निज कामहि में है
होत अचंभित ब्रम्हहि
आजुहि ,, का
हम नाथहि ग्रामहि में है
मत्तगयन्द सवैया छन्द .........(11)
स्वर्ण जड़े सब मंदिर है
वह ,, माणिक
में सब द्वार मढ़े है
भौन बना इक उच्च तहाँ पर
,, जा उस
द्वार सुदाम अड़े है
द्वारहि पाल सुनाय रहे
द्विज ,, नाथ
अनाथन साथ पढ़े है
जाय सँदेश कहो प्रभु से
तुम ,, बाल
सखा उन द्वार खड़े है
किरीट सवैया छन्द ..........(12)
सोचत है मन सेवक ये हम
कैसन जाय सँदेश सुनावहु
बाल सखा कहते हरि को यह
दारिद है यह बात बतावहु
जौ नहि मानहु बात
सुदामहि ब्रम्हहि शाप गले लगवावहु
मारि चला मन सेवक है वह
होइ सुखी हरि दास कहावहु
सुन्दरी सवैया छन्द ..........(13)
नहि शीश पगा तन हूँ न
झगा प्रभु जानत हूँ न बसे केहि ग्रामा
लिपटी तन धोति फटी जिनके
अरु पाँव उपामह की नहि शामा
द्विज द्वार खड़ा व निहार
रहा कह बाल सखा हमरे घनश्यामा
तुम जाय सँदेश कहो हरि
से ,उन
द्वार खड़े इक ब्रम्ह सुदामा
घनाक्षरी छंद .......... (14)
सुदामा नाम सुनिके हरि
छोड़ राज काज
आज दौड़े नंगे पाँव मित्र
को बुलाने वो
दशा विचित्र देखिके चकित
रुक्मणी हुई
आया ऐसा कौन यहाँ सोच
रही जाने वो
पहुँचे द्वार कृष्ण है
मिलने बाल मित्र से
दशा दीन देखि मित्र लगे
अकुलाने वो
विपदा सही क्यों मित्र
मेरे रहते हुए भी
विप्र बोले विपदा में
मोहि पहिचाने को
दोहा :-; .........(15)
अंक उठा कर द्वार से ,, लाये कृष्ण मुरार
सिंहासन बैठाय के ,,
पहनाया निज हार
मत्तगयन्द सवैया छन्द .........(16)
पाँव पखारन लागि हरी अरु
,, पानि
परात न हाथ छुयो है
नैनन से जलधार बही हरि ,,
नीरहि नैनन पाँव
धुयो है
कंटक जाल लगे इतने उन ,, मानहु पाँव बबूर बुयो है
दीन दशा द्विज देखिह
रोवत ,, अपारहि श्याम भयो है
कुण्डलिया छंद .........(17)
भाभी ने मेरे लिए ,,
दिया कौन उपहार
रहे छुपाते क्यों सखे ,,
बदला न व्यवहार
बदला न व्यवहार ,,
करत तुम अबहूँ
चोरी
चना दये गुरुमातु ,,
चबा गये कर के
चोरी
कह सदोह कविराय न कौनव
ताला चाभी
फिर क्यों रहे छुपाय
दिये तुम तंदुल भाभी
दोहा :-;…..
(18)
इतना कह तब कान्ह ने,,
तंदुल लीन्हा छीन
दो मूठी फिर फाँक के ,, दो लोकों को दीन
किरीट सवैया छन्द ..........(19)
तीसरि मूठि बढ़ी जब
श्यामहि बाँह लगी तब रुक्मणि रोकन
लोक दये तुम दो जब नाथहि
रोक सके तुमको जनि सोचन
होव भिखारि सुदाम सरीखन
नाथ अनाथ करो जनि मोकन
रोक लयो तब तीसरि मूठिहि
नारिहि बात रखी भव मोचन
दोहा :-;……..
(20)
बड़े दिनों तक विप्र ने ,,
किया द्वारिका वास
घरनी का दुख सोच के ,,
हिय बिच उपजी
त्रास
दोहा :-;……..
(21)
लगे कहन तब श्याम से ,,
जावहु अपने धाम
मन में सोचत विप्र तब ,,
दीन्हा नहि कछु
दाम
दुर्मिल सवैया छन्द .......... (22)
जगदीश कहावत बाल सखा ,,
वह पीर सभी हिय
जानत है
हमको छलिया अब भी लगते ,,
हिय ईश उन्हें नहि
मानत है
बहु आदर कीन्ह हमार भला ,,
जनि दाम दिया अब
लानत है
यह सोच अपार हिये दुख भा
,,द्विज
नारि कहा कब ठानत है
सुन्दरी सवैया छन्द ..........(23)
हरि मोकहु दै वह पावहु
भी तुम ये मन श्रापहि दीन्ह सुदामा
घरनी पर कोप किया बड़ है
वह ठेलि पठावत थी इन धामा
यह लादि लढ़ा भर दाम रखो
अब दीन्ह दया करिके घनश्यामा
यह सोचत राह कटी द्विज
की पहुचे तब ग्रामहि ब्रम्ह सुदामा
दोहा :-;……..
(24)
कहाँ फूस की
झोपड़ी,, मन में सोच सुदाम
का फिर वापस लौट
के ,, आये द्वारिक धाम
दोहा :-;……..
(25)
द्वारे प्रिय को
देखि के ,, झट से खोल किवाड़
पाँव छुवन को जब
बढ़ी ,, डांटेव नैन उघाड़
दोहा :-;……..
(26)
हे नारी तुम कौन
हो ,, पिय है तुमरे कौन
बात सुनी जब
विप्र की ,, भई सुशीला मौन
दोहा :-;……..
(27)
भूलि गये तुम का
प्रिये ,, हम तुमरी है नारि
या वैभव जो
देखते ,, दीन्हा कृष्ण मुरारि
कुण्डलिया छंद .........(28)
बात सुनी जब
नारि की,, हिय को मिला है
चैन
लोभ क्षोभ सब
मिट गया, उघरे अंतस नैन
उघरे अंतस नैन ,, विप्र तब रोवन लागे
क्यों हरि का हम
श्राप ,, दीन्ह वह सोचन
लागे
संदोह कहे
कविराय सुनो धरि ध्यान गुनी
करते नही यकीन
सभी कानों कि बात सुनी
दुर्मिल सवैया छन्द .......... (29)
यदुनाथ सुदामहि
मीत कथा मति मंद लिखा सनदोहहि ने
गिरिजा पति होय
दयाल सदा नहि द्वन्द रहे हिय मोहहि में
तर जाय सभी भव
सागर से विनती यदुनाथ य तोहहि से
रसहीन रहा वह
काव्य सदा रसना हरि नाम न जोहहि जे