श्याम तूने जो बंशी बजायी न होती
तो सखियों संग राधा अकेली न होती
न दिल उसका आता तेरे पर ऐ मोहन
न राहों में वह बावरी बन मचलती
तेरी बंशी ने उसपर ये जादू किया है
तन मन की सुध खोई रटे पिया पिया है
हुई क्या खता मेरी सखी से ऐ नटखट
छीन उसका चैन ये दर्द क्यों दिया है
भूल जाती तुझको वो याद नही करती
प्रीत की रीति जो सिखायी न होती
मझधार में छोड़ के जो जाना था कन्हैय्या
प्यार क्यों किया हमसे बंशी के बजैय्या
तोड़ मेरी मटकी रोज पनघट पर सताते थे
भूल गयो सारी बातें क्या यशुदा के छैय्या
आज मेरी कान्हा ये जग हँसाई न होती
श्याम तूने जो बंशी बजायी न होती
चिदानंद शुक्ल (संदोह )
तो सखियों संग राधा अकेली न होती
न दिल उसका आता तेरे पर ऐ मोहन
न राहों में वह बावरी बन मचलती
तेरी बंशी ने उसपर ये जादू किया है
तन मन की सुध खोई रटे पिया पिया है
हुई क्या खता मेरी सखी से ऐ नटखट
छीन उसका चैन ये दर्द क्यों दिया है
भूल जाती तुझको वो याद नही करती
प्रीत की रीति जो सिखायी न होती
मझधार में छोड़ के जो जाना था कन्हैय्या
प्यार क्यों किया हमसे बंशी के बजैय्या
तोड़ मेरी मटकी रोज पनघट पर सताते थे
भूल गयो सारी बातें क्या यशुदा के छैय्या
आज मेरी कान्हा ये जग हँसाई न होती
श्याम तूने जो बंशी बजायी न होती
चिदानंद शुक्ल (संदोह )
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