Sunday, August 19, 2012

दिल की किताब मांग बैठे


साथ गुजरे पल का वह हिसाब मांग बैठे
कैसे लाऊं मै वो दिल की किताब मांग बैठे

पिलाते थे अपने चश्मों से रोज जाम जो
वो मुझसे ही देखो आज शराब मांग बैठे

कैसे करूं मै पूरी ये आरजू सनम की
रेगिस्तान में वो मुझसे गुलाब मांग बैठे

तडपते रहे दिन रात जिनकी यादों में
वो अपने आसुंओं का हिसाब मांग बैठे

दिल के जख्मों को ले अब तक जी रहा था
आते ही आज देखों अपना ख्वाब मांग बैठे

चिदानंद शुक्ल (संदोह )

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