बात देखो मेरी अब कहाँ तक जाएगी
निकली जो जुबाँ से दूर तक जाएगी
रही मेरे सीने में दफ़न जब तलक
डर रहा बन के आंसू निकल जाएगी
ख्वाब में जब सजाया यह सोचकर
वह सपनों में मेरे कभी तो आएगी
प्यार करता रहा पत्थर से यह सोचकर
एक न एक दिन तो खुदा वह बन जाएगी
खुद से भरोसा हटा उसपर भरोसा किया
क्या खबर थी कि वह अब बदल जाएगी
जिन्दगी जी रहा था धुएं के पेड़ पर
संदोह तेरी सिगरेट अब बुझ जाएगी
चिदानन्द शुक्ल (संदोह )
निकली जो जुबाँ से दूर तक जाएगी
रही मेरे सीने में दफ़न जब तलक
डर रहा बन के आंसू निकल जाएगी
ख्वाब में जब सजाया यह सोचकर
वह सपनों में मेरे कभी तो आएगी
प्यार करता रहा पत्थर से यह सोचकर
एक न एक दिन तो खुदा वह बन जाएगी
खुद से भरोसा हटा उसपर भरोसा किया
क्या खबर थी कि वह अब बदल जाएगी
जिन्दगी जी रहा था धुएं के पेड़ पर
संदोह तेरी सिगरेट अब बुझ जाएगी
चिदानन्द शुक्ल (संदोह )
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