Sunday, August 19, 2012

मत्तगयन्द सवैया छन्द , सुन्दरी सवैया छन्द


मित्रों आज कई दिनों से कुछ लिखा नही जा रहा था तो आचानक ध्रुव का प्रसंग याद आ गया उसी पर दो सवैया छन्द लिखे है पहला मत्तगयन्द सवैया 23 वर्णों का छन्द है, जिसमें सात भगण (ऽ।।) और दो गुरुओं का योग होता है। और दूसरा सुन्दरी सवैया छन्द जो 25 वर्णों का और इसमें आठ सगणों तथा गुरु का योग होता है।

मत्तगयन्द सवैया छन्द
रोवत बालक मातु समीपहि जाकर के यह बैन उचारो
खेलन आज गयो नृप द्वारहि राजन गोद हमे है बिठ
ारो
देख हमे लघु मातहि ने तब जोरहि मोरहि कान उखारो
और कहा नहि बैठ सको तुम बैठत है यह पुत्र हमारो

सुन्दरी सवैया छन्द
समझाय रही सुत को अपने जनि शोक करो हिय में अपने है
नृप गोद उतार दियो तुमको उपकार प्रभूत किया उनने है
सुमिरो हरि को मन धरिके वह पूर्ण करे सबही सपने है
तप जाय करो वन में हरि का हरिहे सब संकट वो जितने है

चिदानन्द शुक्ल (संदोह )

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