फूल जिनकी राहों में बिछाते गये हम
आज वही काँटों का ताज लिए बैठे है
भरोसे से जिन को राजे दिल बताया
आज वही दुश्मनों को राज दिए बैठे है
जो हँसते थे कल तक शाहजहाँ पर
आज देखा बाग में मुमताज़ लिए बैठे है
संगीत से जो न वाकिफ थे नामुराद
आज वही काँटों का ताज लिए बैठे है
भरोसे से जिन को राजे दिल बताया
आज वही दुश्मनों को राज दिए बैठे है
जो हँसते थे कल तक शाहजहाँ पर
आज देखा बाग में मुमताज़ लिए बैठे है
संगीत से जो न वाकिफ थे नामुराद
आज वही महफ़िल में साज लिए बैठे है
किस गुलिस्ता कि बात करते हो संदोह
हर डाल यहाँ चिड़ियों को बाज लिए बैठे है
चिदानन्द शुक्ल (संदोह )
किस गुलिस्ता कि बात करते हो संदोह
हर डाल यहाँ चिड़ियों को बाज लिए बैठे है
चिदानन्द शुक्ल (संदोह )
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