Sunday, August 19, 2012

चिड़ियों को बाज लिए बैठे है


फूल जिनकी राहों में बिछाते गये हम 
आज वही काँटों का ताज लिए बैठे है

भरोसे से जिन को राजे दिल बताया 
आज वही दुश्मनों को राज दिए बैठे है 

जो हँसते थे कल तक शाहजहाँ पर
आज देखा बाग में मुमताज़ लिए बैठे है 

संगीत से जो न वाकिफ थे नामुराद 
आज वही महफ़िल में साज लिए बैठे है

किस गुलिस्ता कि बात करते हो संदोह
हर डाल यहाँ चिड़ियों को बाज लिए बैठे है

चिदानन्द शुक्ल (संदोह )

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