Thursday, December 22, 2011

"मनु का क्रंदन "

प्रकृति के हिमगिरि शिखर पर
कर रहा वह करुण क्रंदन
क्या किया था पाप हमने
जो हुआ यूं स्रष्टि विखंडन
स्वयं के अस्तित्व की लड़ाई 
सदियों से लड़ता रहा यह जानकर
उर्वशी है साथ मेरे मै अकेला हूँ नही
मै डटा रहा रणभूमि में सीना तानकर 
पर हाय अब तो मै अकेला
ही रह गया इस धरा पर
उर्वशी तो अप्सरा थी जो 
कुछ समय को आयी धरा पर
अब न ही उर्वशी है पास मेरे
और मेरा पौरुष भी जाता रहा 
अब होती निराशा जानकर यह 
क्यों व्यर्थ में जीता रहा 
इन विचारों को मन में लिए 
कर रहा वह ईश्वर का वंदन 
कर रहा वह करुण क्रंदन


क्यों किया था मैंने 
प्रणय निवेदन उवर्शी से
मै खोजता क्यों हूँ 
उसे अब बेबसी से 
जब कहा था उसने एक दिन
छोड़ मुझको चली जाएगी
वह स्वर्ग की अप्सरा है 
न वापस धरा पर कभी आएगी 
उस समय हमने यदि काम को 
वश में कर लिया होता
न उवर्शी से मिलन होता 
न बिछड़ने का वियोग होता
पर विधाता ने मानो मनु की परीक्षा
लेने को उर्वशी को उसके पास भेजा था
स्रष्टि का संचालन तो वह स्वयं करता है
इस बार उसने मनु को निमात्ति बना भेजा था 
अब वह जोरों से अट्ठाहस 
कर रहा मनु की दुर्दशा पर
क्यों किया था प्रणय निवेदन 
कर रहा वह करुण क्रंदन

इस प्रलय में मनु अकेला 
शिखर पर कर रहा क्रंदन 
अब उसे सान्तवना देने 
नही आएगी कोई उर्वशी
वह तो सदियों पहले 
बादलों के आगोश में खो गयी 
अब संकट में आ गया
मनु का अस्तित्व 
अब मनु कैसे 
उत्पन्न करेगें स्रष्टि 
जब उवर्शी का 
नही होगा अस्तित्व
नर का यह गुमान 
तब चला जायेगा 
और होगा सत्य का ज्ञान
तब विधाता सिर्फ मुस्कुराएगा
और फिर धरती पर नही संभव 
हो पायेगा मानव का जीवन 
मनु अब करें किसका आलिंगन
कर रहा वह करुण क्रंदन

चिदानन्द शुक्ल (संदोह )

Sunday, November 13, 2011

मै बनना चाहूं एक ऐसा कवि

मै बनना चाहूं एक ऐसा कवि 
जो लिखे बात अपने दिल की 
अश्रु को स्याही बनाकर 
भावनाओं की कलम से 
मै लिख डालूँ बात
अब अपने दिल की 
कीर्ति फैले हमारी ऐसे 
जैसे किरणे फैलता रवि 
मै बनना चाहूं एक ऐसा कवि

मै लिखूं ऐसी कविता 
जिसमे कोई रस न हो 
और न ही वह नीरस हो 
न श्रंगारकी गाथा हो उसमे 
न वीर रस का बखान हो 
मेरा कवित्त वीभत्स और 
करुण रस से भी अनजान हो
न ही बखान करूँ मै सोम की छवि 
मै बनना चाहूं एक ऐसा कवि

मेरा किसी से कोई नाता न हो 
कान्हा के सिवा कोई भाता न हो 
न लिखूं कोई बाते मै राग द्वेष की
पर प्रेम की परिभाषा लिखूं 
हर पल एक नई सीख सीखूं 
मेरे नयनो मे बस जाये
मेरे श्याम सुंदर की छवि 
मै बनना चाहूं एक ऐसा कवि 

चिदानन्द शुक्ल ( संदोह )

एक लड़की मेरे जीवन में क्यों बार -बार है आती

एक लड़की मेरे जीवन में क्यों बार -बार है आती 
जब भूल चूका हूँ मै उसको फिर याद क्यों उसकी आती 
मैंने छोड़ दिए सारे वह रस्ते जो उसकी याद दिलाते थे 
जला दिए वह सारे पन्नें जो उनके नाम से आते थे 
मैंने जला दिया उस दिल को जिसमे तुम रहते थे 
घर फूक तमाशा देखते आशिक ऐसा सब कहते थे 
पर जब होते है सकूँ में हम वह चैन चुराने आ जाती 
एक लड़की मेरे जीवन में क्यों बार -बार है आती 

अब क्या करे बता दो तुम सब कैसे उसको हम भूले 
सावन में जब पड़ते झूले बिन सजना के कैसे झूले 
हम जाते है मयखाने गम अपना दूर मिटाने को 
मय में आ जाती तस्वीर है उनकी मेरा दर्द बढ़ाने को 
रात में जब सोते है हम तो वह सपना बनकर आ जाती 
एक लड़की मेरे जीवन में क्यों बार -बार है आती 

जब लिखने बैठूं मै कुछ भी उसकी कविता बन जाती 
उसकी झील सी गहरी आँखों में ये कश्ती मेरी डूब जाती 
अब तो हैरान हूँ क्यों नही भूल पता हूँ उन्हें भूलकर 
जो चले गये थे मुझे इस जहाँ में तनहा छोडकर 
कविता की नायिका वो बनकर मेरी कविता में आ जाती 
एक लड़की मेरे जीवन में क्यों बार -बार है आती 

चिदानन्द शुक्ल ( संदोह )

मै अपने गम सारे

तुमसे मिलकर भूल गया हूँ मै अपने गम सारे
छोड़ आये सारे जग झगडे आ गये तेरे द्वारे 
अब नही रहा डर मौत का अपनी और न ही रही तन्हाई 
मंजिल चलकर दर पर आयी क्या है तेरी प्रभुताई 
क्यों स्नेह करें हम जग से जो स्वार्थ बस प्रीत निभाई 
राधा को प्रेम दिया है तुमने मीरा को भक्ति प्रदान किया 
अर्जुन को है सखा बनाया भीष्म के लिये प्रण त्याग दिया 
दास बना लो कान्हा हमको जग वालो ने हमे ठुकरा दिया 
सभी ओर से ठोकर पड़ रही अब साथ छोड़ गये सारे 
तुमसे मिलकर भूल गया हूँ मै अपने गम सारे

प्रीत की रीत सारा जग भूला लक्ष्मी पति बिसराई
लक्ष्मी को उर में है बसाया भूल गये प्रभु की प्रभुताई 
बचपन बीता खेलकूद कर तिरिया संग बीती तरुणाई
कान्हा को तू मीत बना ले उनसे अपनी प्रीत निभा ले 
धर्म को अपना कर्म बना ले सत्य का मर्म समझ ले 
पीर पराई जानी न तुमने तेरी व्यथा कौन सुन ले
राधा रामन हरि गोविन्द जय बोलो मिलकर सारे 
तुमसे मिलकर भूल गया हूँ मै अपने गम सारे
चिदानन्द शुक्ल ( संदोह )

अश्क बहाते रहे हम

तुम्हारे आने के इंतजार में तमाम रात जगते रहे हम 
रात के अंधेरों में भी सुबह का भरम पालते रहे हम 

और जब सुबह हुई मेरे जीवन की और वह आये 
उस वक्त गहरी नींद के आगोश में जा चुके थे हम 

ख्वाबों की मेरी दुनिया अब हकीकत बन चुकी थी
सपनों में अपनी स्वप्न सुन्दरी के संग रह रहे हम 

अब नही रहा गिला किसी के आने न आने का 
मुझको जो तुमसे मिला खुश हो गये उसी में हम 

एक गाँठ जो पड़ गयी थी हमारे तुम्हारे बीच में 
उस गाँठ को सुलझाने में ताउम्र उलझे रहे हम 

हर महफिल में तलाशती उनको मेरी नज़रें 
आये महफिल में जब तन्हाई में जा चुके थे हम 

कौन कहता है की आशिकी में जुदाई नही होती
संदोह आशिकी में अब तक अश्क बहाते रहे हम 

चिदानन्द शुक्ल ( संदोह )

रूठ गये बालम हमार


सावन में बालम घर आवत पर रूठ गये बालम हमार

मोर संग नाच रही मोरनी रिमझिम पड़े फुहार 

पिया बिना सावन है सूना का से करूँ गुहार 

स्वाति बूँद को पपीहा तरसे पिऊ पिऊ करे पुकार 

दिन तो कट जाये सखियन के संग रात न कटे हमार 

घायल की गति घायल जाने का जग से करूं मनुहार 

सावन में बालम घर आवत पर रूठ गये बलम हमार

घन घमंड कर गरजे घोर छाया अंधकार चहु ओर

दामिनी दमके नभ के भीतर जियरा में उठे हिलोर

सावन बीत गया बिनु साजन भादों रात घनघोर 

हर रात अमावास की लगती अब नही संग चाँद चकोर

सेज पड़ी पिया बिनु सूनी आँख न लगय हमार 

पिया रूठ कर हमसे चले गए का से करी तकरार 

सावन में बालम घर आवत पर रूठ गये बलम हमार

आखियाँ बरसाकर सावन बीते ठिठुर -ठिठुर कर अगहन

मधुमास की मस्त बयरिया से जल गया मेरा मन 

आय नही अब तक मेरे दिलबर कब तक बहलाऊ मन 

पिय की आस में खुली रही अखियाँ निर्जीव हो गया तन 

मौत खड़ी द्वारे पर हसती कर लेउ संग अब हमार 

संदोह विरह व्यथा में घायल पक्षी करता करुण पुकार 

सावन में बालम घर आवत पर रूठ गये बलम हमार

चिदानन्द शुक्ल (संदोह)

कलेजा काँप जाता है

तेरे बारे में जब लिखने बैठू कलेजा काँप जाता है 
कलम साथ न देती हमारा हाथ मेरा काँप जाता है 
मै सोचता हूँ तेरे हुस्न की तारीफ लिखूं या गुरूर 
यह सोचते -सोचते हूँ जाता हूँ दिल के हांथों मजबूर .
तेरी तारीफ में क्या लिखूं लोग जलने लगेगें मुझसे 
गर लिखता हूँ तेरी बेवफाई तो रहम खाने लगेगें मुझसे 
जिक्रे मोहब्बत होता है जब भी तेरा किस्सा याद आता है 
तेरे पहलू बे बैठ कर जो ख्वाब देखे थे वो मंजर याद आता है
तेरे बारे में जब लिखने बैठू कलेजा काँप जाता है 

तेरे हुस्न का जलवा ही था जिसने हमे आशिक बना दिया 
तुझसे मिलने की दीवानगी ने हमे काफिर बना दिया 
अब न ही मेरा कोई खुदा न ही उसकी कोई खुदाई है 
मेरे नसीब में तो बस अब अपने यार की जुदाई है 
कहते थे हम उनसे कोई छीन न पायेगा हमसे तुम्हें 
बेबस हो गये अपने ही प्यार से जो तन्हा छोड़ गया हमें 
गुजरता हूँ जब उनकी गलियों से वो खंजर याद आता है 
समुन्दर न डुबो पाया जिसको वह दरिया में डूब जाता है 
तेरे बारे में जब लिखने बैठू कलेजा काँप जाता है 

अब तो लगता नही मुझको की हम फिर से मिल पायेंगें
पर क्या हम बिना उनके इस जहां में अकेले रह पायेंगे
वादा तो था तुम्हारा चन्द मिनटों में लौट आने का 
हो गये वर्षों न आये तुम पता भूल गये मेरे ठिकाने का 
दिल में लगी आग को बुझाते -बुझाते सूख गया आँखों का समुन्दर
तुम आ जाते तो भर जाती आँखे मेरी देख लेता तुम्हे जी भरकर 
संदोह न आना इस राह में फिर से राही रास्ता भूल जाता है 
निकला था सत्य खोज में और मिलते ही उनके खुद को भूल जाता है 
तेरे बारे में जब लिखने बैठू कलेजा काँप जाता है

चिदानन्द शुक्ल ( संदोह )

Thursday, October 20, 2011

मै नशे का गुलाम हूँ

नशे में चूर हूँ मै नशे का गुलाम हूँ 
कभी दौलत का नशा 
तो कभी शोहरत का नशा 
कभी मोहब्बत का नशा
 कभी उल्फत का नशा 
कभी तेरी वफाई का नशा 
कभी बेवफाई का नशा 
कभी  मिलने का नशा
 कभी बिछड़ जाने का नशा 
मै सुनाता नशे का पैगाम हूँ 
नशे में चूर हूँ  नशे का गुलाम हूँ 

कभी मय का नशा 
कभी मयखाने का नशा 
कभी जाम से पीने  का नशा
कभी आँखों में जीने  का नशा 
कभी सिगरेट का नशा
 कभी गुटखे का नशा 
कभी  यादों का नशा
 कभी तेरे वादों का नशा  
मै बनाता नशे के नित नए आयाम हूँ 
नशे में चूर हूँ  नशे का गुलाम हूँ 

नशे से ही मानव का अस्तित्व है 
नशा ही नशा नशा व्याप्त सर्वत्व है 
नशे से ही मानव का विकाश है 
हर ओर नशे का ही प्रकाश है 
नशा ही नश्वर जीव की पहचान है 
फिर क्यों हम नशे से बने अनजान है
नशा नाश की निशानी है 
ये बाते अब  हुई पुरानी है 
नशा ही अब मेरी जिन्दगी 
नशा ही अब मेरा मुकाम है 
नशे में चूर हूँ मै नशे का गुलाम हूँ 


चिदानन्द शुक्ल ( संदोह )  

Wednesday, October 19, 2011

अब अहिस्ता -अहिस्ता फिर से जीना सीख रहे हम

अब अहिस्ता -अहिस्ता फिर से जीना सीख रहे हम
होश में आने से पहले गहरी बेहोशी में जा रहे हम

अब ये मुमकिन हो नही सकता कि न लौटे अब हम होश में
जहाँ से कोई वापस न आ सका उस राह से लौट आयेंगें हम

ये जिन्दगी में अब तक वहम था मुझको कि तू मेरे साथ है
तू जिन्दगी है मेरी ऐसा समझकर मौत से खेलते रहे हम

धरती और आसमान के मलिंद बनी रही दूरियां अपनी
दूर से हम मिलते नज़र आये और पास में बड़ी दूर हो गये हम

तुझको पाने कि खातिर कई वर्षों तक पूजा कि हमने पत्थर क़ी
शुक्र है अब उन का पत्थरों का जिनकी पूजा से पत्थर बन गये हम

मै तुझको चाँद समझकर हर पूनम कि रात का इंतजार करता
अब तेरी बेरुखी से पूनम कि रात को भी अमावास बन गये हम

ये आखिरी मुलाक़ात है संदोह अब दुबारा न मिल पाएंगे
न जाने ऐसा क्यों सोच कर हर शख्श से मिलते है हम

जिन्दगी ने हमे वह सब कुछ दिया जो हमारे नसीब में था
बस गलतियाँ हमारी थी उनको संभाल नही सके हम

चिदानंद संदोह मोह को हरने वाले थे मेरे भोले नाथ
उनकी कृपा रही मुझ पर जो इस मोह जाल से बचे हम

चिदानन्द शुक्ल ( संदोह )

Wednesday, October 12, 2011

अपने दर्द को हम अपनी लेखनी में उतार दिया करते है

अपने दर्द को हम अपनी लेखनी में उतार दिया करते है
लिखने को शब्द नही होते पर फिर भी लिख दिया करते है

कोशिश करता हूँ मै जब भी कोई नई दास्ताँ लिखने की
हर बार दiस्ताने मोहब्बत लिख दिया करते है

जब भी नज़रें मिलाता हूँ अपने महबूब से
हर बार वो अपनी नज़रें झुका लिया करते है

जब नजर नही मिलती उनसे तो इकरार कैसे होगा
दिन रात मेरे यार हम यहीं सोचा करते है

हमारे दिल में क्या है ये तुम नही समझ पाते
कहते हो बड़े शौक से हम प्यार तुमसे करते है

कभी तो गुजरेंगे मेरे महबूब इस राह से
हर रोज यह सोचकर पलकें बिछाया करते है

था इरादा मेरा इस जहा को नाप लेने का
पर हर रोज तेरी राह में भटका करते है

गर मुझसे कोई खता हो दोस्तों माफ़ करना
बस आपकी मेहरबानियों से कुछ लिख लिया करते है

हम इस काबिल नही है संदोह लोग मुझसे प्यार करें
पर खुदा की इनायत है हम पर की लोग प्यार करते है



चिदानंद शुक्ल ( संदोह )

Monday, September 26, 2011

एक प्रेम कहानी


आज मैंने सोचा की कुछ लिखा जाय ऐसा ही सोचकर मै एक कहानी  लिखने जा रहा हूँ जो तथ्यों पर आधारित नही है एक काल्पनिक और दार्शनिक व्यक्ति में बहुत  अंतर होता है हालाँकि कहानी कुछ ऐसी है जो आधुनिक परिवेश में रहते हुए रुढ़िवादी मानसिकता की प्रेम कहानी है जैसा की उम्र का प्रभाव होता है और इस उम्र में उपदेशात्मक कहानी की आशा करना एक जवान लड़के से बेईमानी होगी पर मैंने अपनी सामर्थ्य के अनुसार कोशिश कर रहा हूँ बात उन दिनों की है जब मै ग्यारहवीं कक्षा में था जुलाई का महीना था सबके अभिभावक गण अपने -२ बच्चो को विद्यालय ,कोचिंग ,कॉलेज में दाखिला करा रहे थे बात हमने भी मैट्रिक की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में पास कर ११ कक्षा में गया हमारे मित्र मंडली में गर्ल फ्रेंड की मनो बहार आ गयी हो हर दूसरा व्यक्ति अपनी-२ लड़की दोस्त के बारे में बातें करता और उस समय तक हमारे पास कोई ऐसा नही था क्योकि की  हमारा परिवेश अन्य लडको से अलग था हम सातवीं कक्षा तक हमारी शिक्षा गाँव में हुई हालाँकि हम जिस स्कूल में पढ़ते थे वह पर लड़के और लड़किया साथ ही पढ़ती थी परन्तु पता नही क्यों मुझे चिढ होती थी उस समय लड़कियों से न तो बात करना न ही उनकी तरफ देखना मुझे पसंद था
हमारे मित्र गण जिनमे कुछ हमारे गाँव के थे एक लड़की जो हमारे साथ पढ़ती थी उसके साथ मेरा नाम जोड़ने लगे मुझे बहुत गुस्सा आता था इन सब चीजों से क्योकि इसे मै पाप समझता था एक दिन उसने मुझसे कहा जब सब लोग तुम्हे मेरा नाम लेकर चिढाते है तो तुम मेरे दोस्त बन जाओ चिढ़ते क्यों हो दोस्ती करना बुरी बात तो नही आखिर हम लोग दोस्त तो बन ही सकते है मुझे उसकी बात इतनी बुरी लगी की मैंने उसके गाल पर एक झन्नाटेदार तमाचा मर दिया वह रोने लगी कक्षा के अन्य लड़किया जो उसकी दोस्त थीं वह स्कूल के प्रधानाचार्य के पास मेरी शिकायत लेकर गयी मुझे बुलाया गया और हमारे मास्टर साहब ने हमसे प्रश्न किया की क्यों तुमने इस लड़की को मारा तुम तो पंडित के लड़के हो तुम्हे तो इतना ज्ञान होना चाहिए की एक अबला पर हाथ नही उठाते लेकिन तब तक हमारे प्रिंसिपल महोदय ने मेरे ऊपर डंडो की बरसात कर दी उस लड़की को बुलाया गया उससे पूछा गया आखिर क्यों इन्होने तुम्हे मारा वह अत्यंत विन्रम भाव से उसने उत्तर दिया गलती मेरी थी मास्टर साहब और इन्हें छोड़ दिया जाये खैर मै उस दिन तो किसी तरह स्कूल में बिताया पर मेरा मन अब स्कूल में नही लगता था मै शहर आ गया
और यहा पर मेरे पिता जी ने हमारा दाखिला एक ऐसे कॉलेज में कराया जिसमे सिर्फ लड़के पढ़ते थे और हम आराम से पढाई कर रहे थे जैसा की मैंने आपको बताया की प्यार का भूत मेरे सर पर दसवीं की परीक्षा पास करने के बाद आया जब मेरे मित्र आपस में अपनी-२ गर्ल फ्रेंड के बारे में बात करें तो मुझे अंदर से ग्लानी हो की हमारे पास कोई नही है जब मै ग्यारहवीं में पहुंचा मेरे पिता जी ने शहर की एक प्रतिष्ठित कोचिंग में मेरा दाखिला करा दिया जब मै पहले दिन कोचिंग गया तो वह पर मुझे एक अत्यंत सुन्दर लड़की दिखाई दी जो की हमारे ही कक्षा में थी न जाने क्यों ऐसा लगा की हमारी तलाश पूरी हो गयी हमे यही चाहिए थी जो मिल गयी

मैंने उस दिन से मन में ठान लिया की हमे यही चाहिए अगले दिन जब मै कोचिंग पहुँचा तो वह भी आई थी और यह विडंबना ही थी प्रक्रति की हम दोनों की टाइमिंग एक थी और वह मेरे ही कक्षा में थी हम उस पूरा दिन उन्ही को देखते रहे क्या हिरनी जैसे आँखे थी उसकी गुलाबी गाल और ऊपर से लम्बी और घनी जुल्फें जो सभी का मन मोह लेती थी और खास कर हमारे लिये तो वह किसी ऊर्वशी से कम न थी अपितु उससे भी अधिक सुंदर अब मै पूरी तरह से होश को चुका था
उनको देख कर मेरे मन में यह आने लगा की मै किस प्रकार उससे बात करूँ क्यों कि मुझे इससे पूर्व कोई ऐसा अनुभव तो था नही जब दोपहर में घर आया भोजन करके हम सो गये लेकिन ख्वाबों में वही ख्यालों में वही और सपनों में भी वही ऐसा मेरे साथ पहली बार हुआ था इससे पहले अनेक लड़कियां मिली पर किसी के बारे इतनी उत्सुकता नही थी मेरे मन में पर एक डर ये भी लग रहा था की कही ऐसा तो नही वह हमारी जाति की न हो क्योंकि हम पहले ही बता चुके है की हम रहते
आधुनिक परिवेश में जरूर थे परन्तु हमारी सोच रूढ़िवादी विचारधाराओं वाली थी इस लिये हमने ईश्वर से यह प्राथना करनी आरम्भ कर दी की वह हमारी ही जाति की हो खैर जब मै अगले दिन कोचिंग गया तो मुझे लगा की अब कुछ करना चाहिए मैंने उसका नाम जानने के लिये उससे कहा कि कृपया अपनी नोट बुक हमे एक दिन के लिये दे जिससे जो मेरा पिछला कार्य रह गया है उसे मै पूरा कर सकूं उसने पहले तो मना कर दिया पर मेरे एक दोस्त के हस्तछेप करने के बाद उसने हमे अपनी नोट बुक दी मैंने जब उसका नाम पढ़ा तो मनो हमे कुबेर का खजाना मिल गया हो मै जैसा चाहता था वह तो बिलकुल वही थी यानि वह मेरी ही जाति कि थी अब मुझे लगा कि यदि इसे मुझे पाना है तो इसके लिये  देवादिदेव भगवन भोलेनाथ को प्रसन्न करना होगा मै तनमन धन से उनकी  पूजा में जुट गयाऔर अब इधर कोचिंग भी समय से पूर्व जाने लगा मै यही सोचता कि जितना अधिक समय हो सके सिर्फ उसको देखूं समय व्यतीत होता गया पर मै उससे अपने दिल कि बात नही कह पाया क्योंकि डर ये लगता था कि अगर कहा तो कहीं एस आना हो ये रो पड़े क्योंकि ऐसी एक दुर्घटना हमारी कोचिंग में हो चुकी थी मै जीवन भर तनहा रह सकता था पर उसे एक पल के लिये भी रुला नही सकता था शायद इसी डर के कारण मैंने उससे अपने दिल की बात नही कही और समय बीतता गया हम लोगों की राहें अलग -२ हो गयीं उसके बाद से हम आज तक उससे न मिल सके और प्रकृति की इसे विडम्बना ही कहेंगे हम लोग एक ही शहर में रहते हुए भी पिछले ८ वर्षों से नही मिले हालाँकि अब हमे यकीन है उनकी अपनी एक अलग दुनिया बस चुकी होगी पर हमे कोई गिला नही लेकिन ईश्वर से यह प्राथना है की मै उसे कभी न भूलूँ वह सदैव मेरे ह्रदय पर राज करती रहे

चिदानंद शुक्ल

Friday, September 23, 2011

तुम नज़र बचा के निकलते हो तो निकलो


तुम नज़र बचा के निकलते  हो तो निकलो
मै आईना हूँ  अपनी जिम्मेदारी निभाता हूँ  
मुझे नज़र भर भी नही देखते हो  ऐ संग दिल
खौफ खाओ खुदा का मै तुमसे मोहब्बत करता हूँ
करते हो तुम इनकार मेरी मोहब्बत से
पर मै तो तुझे देखकर ही जिया करता हूँ
न छोड़ कर जाओ इस मझधार में हमें
मै तो तुमको ही अपना नखुदा समझता हूँ
बड़ी मुश्किल होती है जामने के संग चलने में
हर वक्त तेरे साथ की तलाश किया करता हूँ
बारिश होगी तू आशिया में तुम्हे आना ही पड़ेगा 
यह सोच कर हर वक्त आखों को बरसाया करता हूँ 
अब नही रहा गम तुझसे न मिल पाने का 
हर शख्स में अब तो तेरे दीदार किया करता हूँ 
अब चंद पल बचे है मेरी जिन्दगी के 
हर पल को खुशनुमा बना के जिया करता हूँ 
तू अब मुझे नही पहचानना चाहते तो न पहचानो
मै खुद को न भूलने दूं तुम्हे यह अपनी जिम्मेदारी समझता हूँ 

                           चिदानन्द शुक्ल (संदोह )

Sunday, September 18, 2011

गर उदास है दिल


   
गर उदास है दिल तो तो ये उदासी छोड़ दो 
जो न हो सके तुम्हारा उसको उस पर छोड़ दो 
न कोई खता दो उसको न ही कोई इनाम दो 
जिसने  दिल तोडा तुम्हारा उसको दिल में बसाना छोड़ दो 
मिल जायेंगें सारे सुकून दुनिया की तुम्हे 
बस तुम उनकी राहों से गुजरना छोड़ दो 
मत बरसाओ ये घटायें अपनी आँखों से तुम 
अब कुछ तो नमी इन आँखों में भी  छोड़ दो 
ये लब मुरझा गये तेरा नाम लेते -लेते 
ये आँखे भी पथरा गयीं तेरी राह तकते -तकते 
संदोह  न आयेंगे तेरे महबूब तुझसे मिलने  
अब तुम उनकी राह को तकना छोड़ दो 
      चिदानन्द शुक्ल ( संदोह ) 

आज़ादी का जश्न



चलो मिलकर मानते है अपनी आज़ादी का जश्न यारों
मेरे बंधू चलो अब करते है अपनी बर्बादी का प्रश्न यारों
आनाज सड़ रहा गोदामों में जनता भूख से रोती
किसान कर रहे आन्दोलन छिन गयी उनकी खेती
आंदोलित जनता को मारा सत्ता का नंगा नाच तो देखो
अनशन करने की सीमा रखते इनकी अब हिम्मत तो देखो
आजाद होकर बन गये गुलाम ऐसी अपनी किस्मत यारों
........................चलो मिलकर मानते है
चुनते हम सरकारें लेकिन मतदान के दिन सो जाते है
छुट्टी मिलती है सरकारी फिर भी हम पिकनिक जाते है
जब नही किया मत का प्रयोग तो व्यर्थ में क्यों चिल्लाते है
जो नेता करते है घोटाला उनको क्यों संसद पहुचाते है
तब तो हम चन्द रुपयों में या शराब में बिक जाते है
फिर हम अपनी सरकारों के खिलाफ क्यों आवाज़ उठाते यारों
..............................चलो मिलकर मानते है
आओ मिलकर यह प्रण कर ले
अब मुक्त करेंगे भारत को भ्रष्टाचार से
मतदान करेंगे अब न बहकेंगे इन नेताओं के व्यव्हार से
भारत को फिर से उसका खोया गौरव वापस हमे दिलाना होगा
कश्मीर की करें क्या बातें पाकिस्तान भी पुनः हमारा होगा
खंड भारत को अखंड बनाने का करते है संकल्प हम यारों
............चलो मिलकर मानते है

जय हिंद              जय भारत                   चिदानंद शुक्ल ( संदोह )

याद कर रही है भारत माता वीर सपूतो जग जाओ
नष्ट भ्रष्ट कर दो तुम आतंक को झंडा अपना लहराओ
कश्मीर की बात न करों अब लाहौर भी हमारा है
पाक को मिला दो खाक में अब अफगान भी हमारा है
बंगला को मिला दो बंगाल में हस्ती मिटा दो चीन की
करो विस्तृत सीमाओ को तुम भारत का अब मान बढाओ

मिटा दो पाक की नापाक मंसूबो को अब करो जंग की तैय्यारी
शांति अहिंसा की पहलों पर बार -बार की उसने मक्कारी
क्या हमे अपने यारों की म्रत्यु पर शोक नही होता
हम सब रातों को भी जगते कसाब जेल में चैन सो सोता
अफजल को मेहमान बनाकर उसको पाले रक्खे है
है हम लोग खुद ही निकम्मे जो ऐसी सरकारें चुनते है
जाति धर्म के फेरे में अब मेरे यारों मत पड़ जाओ
याद कर रही है भारत माता वीर सपूतो जग जाओ

चिदानंद शुक्ल ( संदोह )