बनाते नित नये रिश्ते पुरानों की दुहाई से
हंगामा नही होता कभी गाढ़ी कमाई से
पीते हो हमारी ही हमें बदनाम करते हो
पिलायी मुझको यारों ने कहते हो लुगाई से
बहुत कुछ कहने को है मगर चुपचाप बैठा हूँ
फ़साने मुझको भी मालुम है मगर चुपचाप बैठा हूँ
नही कहता हूँ बेवफा तुमको ये इन्तहा मेरे मोहब्बत की
तू आज भी मिलती छुप छुप के यारों से मगर चुपचाप बैठा हूँ
हंगामा नही होता कभी गाढ़ी कमाई से
पीते हो हमारी ही हमें बदनाम करते हो
पिलायी मुझको यारों ने कहते हो लुगाई से
बहुत कुछ कहने को है मगर चुपचाप बैठा हूँ
फ़साने मुझको भी मालुम है मगर चुपचाप बैठा हूँ
नही कहता हूँ बेवफा तुमको ये इन्तहा मेरे मोहब्बत की
तू आज भी मिलती छुप छुप के यारों से मगर चुपचाप बैठा हूँ
मै आज लिक्खूंगा कलम से बहुत सी बातें
बीतती है कैसे मेरी ये काली स्याह सी राते
खामोश थे जब तक बहुत छेड़ा किये हमको
जो बोले आज महफ़िल में सरे आम होंगी बहुत सी बातें
चिदानंद शुक्ल "संदोह "
बीतती है कैसे मेरी ये काली स्याह सी राते
खामोश थे जब तक बहुत छेड़ा किये हमको
जो बोले आज महफ़िल में सरे आम होंगी बहुत सी बातें
चिदानंद शुक्ल "संदोह "
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