Monday, August 20, 2012

मुक्तक

बनाते नित नये रिश्ते पुरानों की दुहाई से 
हंगामा नही होता कभी गाढ़ी कमाई से 
पीते हो हमारी ही हमें बदनाम करते हो 
पिलायी मुझको यारों ने कहते हो लुगाई से 

बहुत कुछ कहने को है मगर चुपचाप बैठा हूँ 
फ़साने मुझको भी मालुम है मगर चुपचाप बैठा हूँ 
नही कहता हूँ बेवफा तुमको ये इन्तहा मेरे मोहब्बत की 
तू आज भी मिलती छुप छुप के यारों से मगर चुपचाप बैठा हूँ 

मै आज लिक्खूंगा कलम से बहुत सी बातें
बीतती है कैसे मेरी ये काली स्याह सी राते
खामोश थे जब तक बहुत छेड़ा किये हमको
जो बोले आज महफ़िल में सरे आम होंगी बहुत सी बातें

चिदानंद शुक्ल "संदोह "

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