Friday, January 20, 2012

कोई खीझ रहा कोई रीझ रहा कोई बातों से मेरी भीग रहा


कोई खीझ रहा कोई रीझ रहा कोई बातों से मेरी भीग रहा 
पहचान सका न उसको अभी मन मंदिर का जो मीत रहा 
गीत लिखे उस मीत पे जब इस कलम पे हक मेरा न रहा
कभी स्वप्नों मे जिसको देखा मन में धुंधली तस्वीर बनी 
वह दिवा स्वप्न बन कर आयी क्यों मेरी वह तकदीर बनी
मै मोम समझ घर में लाया वह क्यों पत्थर की मूर्ति बनी 
तेरे प्यार को पाने की खातिर मै कठपुतली बन नाच रहा 

मै राम नही जो पत्थर को फिर से नारी में बदल सकूं 
मै एक साधारण सा मानव तेरे रूप को कैसे समझ सकूं 
पत्थर बन तू ह्रदय में बैठी इसमें दूजे को कैसे ढाल सकूं
पत्थर से कैसे प्रीत करूँ इस उलझन में अब तक हूँ रहा 
कोई खीझ रहा कोई रीझ रहा कोई बातों से मेरी भीग रहा 

मै धरती का हूँ घनघोर अँधेरा तुम तेज पुंज की ज्योति हो 
मै ऋतुओं का पतझर हूँ तुम बसंत ऋतु की प्रतिनिधि हो
मैं चिदा चिता सम अग्नि हूँ तुम शिखा शिखर की रानी हो 
ये कुछ कारण है जिससे  संदोह को तेरे प्यार पे संदेह रहा 
कोई खीझ रहा कोई रीझ रहा कोई बातों से मेरी भीग रहा 

चिदानन्द शुक्ल (संदोह )

Sunday, January 15, 2012

तू गैर की बाहों में भी होती है तो मुझे अब जलन नही होती .


अब तो आदत सी हो गयी है हर शय तन्हा रहने की 
अब तेरे पास होने से भी ये तन्हाई मुझसे दूर नही होती ...१

जिक्र जिसका भी आये तेरे नाम के संग महफ़िल में 
पत्थर दिल हो गया हूँ मै अब इसमें हलचल नही होती .....२

सीख लिया है हमने भी अब तेरे बिन रहना ऐ महबूब 
हमें कभी भी तेरे प्यार की  कमी महसूस नही होती .......३

बहुत दिनों तक तूने पिलायी हमें अपने चश्मों से शराब
अब तू नही पास मेरे फिर भी मय की जरूरत नही होती......४

तेरे हुस्न के नशे में मगरूर होकर सब कुछ गवां दिया 
खुद से फिर वह गुस्ताखी करने की हिम्मत नही होती ........५

अब तो  वर वक्त तेरे जिस्म से बेवफाई की बू आती  
तेरी जुल्फों के घने छाये में भी मुझे राहत नही मिलती.........६

तेरी बेवफाई को तो अब तेरी कातिल अदा समझा है संदोह 
तू गैर की बाहों में भी होती है तो मुझे अब जलन नही होती ......७

                                                              चिदानन्द शुक्ल (संदोह )