Monday, September 12, 2011

उसको पाने की चाह


अब हमको उनके प्यार की चाहत न रही 
क्या बताये दोस्त अब पहले सी उल्फत न रही 
कभी हम भी उनकी राह में दिल बिछाया करते थे  
जब दिल ही न रहा अपना तो मोहब्बत कैसी रही  
जिन्दगी को अपने वसूलों से जिया करता हूँ 
किसी को जिंदगी बनाने की अब आदत न रही 
तन्हाई से हो गया है अब इश्क हमको  
महफिलों में जाने की अब आदत न रही 
तेरे प्यार को पाने की खातिर दर-दर भटकता रहा 
मिली हर दर से मुझको ठोकर ऐ जाने जिगर 
अब जिल्लत से जन्नत की तमन्ना न रही 
तू अब गर छोड़ के साथ आती भी है रकीबो का 
अब मुझमे वह पहली सी अमीरी न रही 
बहुत कुछ खोया हमने तुझे पाने के लिये 
अब हमे कुछ भी पाने की आरजू न रही 
इस विरह अग्नि में सूख गयी आँखे मेरी 
अब इनमे वह पहले सी नमी न रही 
ठोकरे खा-खा कर ये दिल हुआ पत्थर के मिलिंद 
अब इसको आईना बनाने की जुर्रत न रही 
बड़ी मुश्किल से संभाला है खुद को यारों 
एक बार फिर से गिरने  की हिम्मत न रही

                                                    चिदानंद  संदोह (शुक्ल )

1 comment:

  1. व्यक्ति जब प्यार में सबको खो देता है तो उसे समझ में आता है की हम क्या कर रहे थे और उस समय वह व्यक्ति जिसके लिये सब कुछ छोड़ने के लिये तैयार होता है वह अब स्वयं से भी नफरत करने लगता है उसका खुद कोई अस्तित्व नही रह जाता ऐसे समय पर वह उस प्यार को भी भूल जाता है मैंने कुछ ऐसी ही अधूरी कोशिश की है आगे अब आप लोग बताये कैसी लगी यह रचना आपको
    चिदानंद संदोह

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