मेरा अब उनसे बात करने का कुछ यूं सिलसिला कम हो रहा था
उनको न मिलता वक्त या यूं कहें की मुझसे प्यार कम हो रहा था
अब न रहीं पहले जैसी शिकवा शिकायतें न अब कोई ऐतबार था
हो चुके थे हम बावफा से बेवफा अब उनका कोई और तलबगार था
मै उनसे कहता कि ऐ जाने वफ़ा अब तुम पहले जैसे नही दिखते
वो कहते कुछ मेरी है मजबूरियां जिनको अब तुम नही समझते
ऐसी क्या थी उनकी मज़बूरी ये अब तक मै न क्यों समझ पा रहा था
........ कम हो रहा था
ये उसके हुस्न का जलवा था यारों या फिर मेरे दीवानेपन कि हद थी
वो हमे फिर से न मिलने कि कसम देती पर मेरी मिलने कि उससे जिद थी
मै खुद तो बेवफा हो सकता हूँ पर उसकी बेवफाई पर मुझे न यकीं था
छोड़ सकता हूँ दुनिया प्यार में तेरे पर तू छोड़ के जाएगी यकीं न था
पर किया तूने कुछ ऐसा कि सारे भरम मै खुद ही तोड़ रहा था .........
मेरा अब उनसे बात करने का कुछ यूं सिलसिला कम हो रहा था
तुझसे मिलने से पहले जीवन में पतझर न था और बहार न थीं
मै खुश न था पर ये मेरी आँखें भी किसी के प्यार में रोयीं न थी
नींदें थीं भरपूर आँखों में ये किसी के इंतजार में खुलीं न थीं
अपनी दुनिया में थे हम मशगूल गम को जानने कि फुर्सत न थीं
उनको न मिलता वक्त या यूं कहें की मुझसे प्यार कम हो रहा था
अब न रहीं पहले जैसी शिकवा शिकायतें न अब कोई ऐतबार था
हो चुके थे हम बावफा से बेवफा अब उनका कोई और तलबगार था
मै उनसे कहता कि ऐ जाने वफ़ा अब तुम पहले जैसे नही दिखते
वो कहते कुछ मेरी है मजबूरियां जिनको अब तुम नही समझते
ऐसी क्या थी उनकी मज़बूरी ये अब तक मै न क्यों समझ पा रहा था
........ कम हो रहा था
ये उसके हुस्न का जलवा था यारों या फिर मेरे दीवानेपन कि हद थी
वो हमे फिर से न मिलने कि कसम देती पर मेरी मिलने कि उससे जिद थी
मै खुद तो बेवफा हो सकता हूँ पर उसकी बेवफाई पर मुझे न यकीं था
छोड़ सकता हूँ दुनिया प्यार में तेरे पर तू छोड़ के जाएगी यकीं न था
पर किया तूने कुछ ऐसा कि सारे भरम मै खुद ही तोड़ रहा था .........
मेरा अब उनसे बात करने का कुछ यूं सिलसिला कम हो रहा था
तुझसे मिलने से पहले जीवन में पतझर न था और बहार न थीं
मै खुश न था पर ये मेरी आँखें भी किसी के प्यार में रोयीं न थी
नींदें थीं भरपूर आँखों में ये किसी के इंतजार में खुलीं न थीं
अपनी दुनिया में थे हम मशगूल गम को जानने कि फुर्सत न थीं
संदोह मिलने से पहले था वक्त कठिन तो जरूर पर जिए जा रहा था
मेरा अब उनसे बात करने का कुछ यूं सिलसिला कम हो रहा था
चिदानंद शुक्ल ( संदोह )
मेरा अब उनसे बात करने का कुछ यूं सिलसिला कम हो रहा था
चिदानंद शुक्ल ( संदोह )