Sunday, August 19, 2012

हरिगीतिका छंद



मातु शारदे के चरणों में प्रस्तुत है दो हरिगीतिका छंद आप सब के विचार आमंत्रित है


माँ शारदे कर दे दया तू ,, द्वार तेरे हूँ खड़ा
अब छोड़ सबकी आस माता ,, शरण तेरी हूँ पड़ा
निज खोल झोली ये भिखारी ,, भीख मांगे ज्ञान की
थोड़ी नज़र फेरो इधर भी ,, प्रिय करुणा निधान की

काव्य महारथियों ने मिलकर ,, व्यूह कुछ ऐसा रचा
मै शब्द बाणो से बींधा हूँ ,,तीर नहि तरकश बचा
रसना बसों यदि आज अम्बे ,, पूर्ण सारे काज हों
जो अभी तक है वार करता ,, साथ विद्वत समाज हो

चिदानन्द शुक्ल (संदोह )

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