मित्रों एक मत्तगयन्द सवैया छंद लिखा है जो आपके सम्मुख प्रस्तुत है यह 23 वर्णों का छन्द होता है, जिसमें सात भगण (ऽ।।) और दो गुरुओं का योग होता है।
नैन विशाल हवे जिनके सखि मोर पखा सिर सोह रही है
है अधरों बिच बांसुरि शोभित ऐसन मूरत मोह रही है
भूलि गयो वह गोकुल श्यामहि गोपिन खोजत खोह रही है
बँवरि हो वृषभान लली अब बाट तिहारहि जोह रही है
चिदानंद शुक्ल (संदोह )
नैन विशाल हवे जिनके सखि मोर पखा सिर सोह रही है
है अधरों बिच बांसुरि शोभित ऐसन मूरत मोह रही है
भूलि गयो वह गोकुल श्यामहि गोपिन खोजत खोह रही है
बँवरि हो वृषभान लली अब बाट तिहारहि जोह रही है
चिदानंद शुक्ल (संदोह )
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