आपकी यादें और मेरी कवितायेँ

मुझे खुद को नही पता मै कब बहक जाऊं तुझको भुलाकर मै खुद को भी भूल जाऊं
मै फिर से उसी दोराहे पर खड़ा हूँ जहाँ से चला था तुझे साथ लेकर
एक एक कर सब मिलते गये फिर सब के सब बिछड़ते गये
अब मै फिर से हो गया हूँ अकेला न रहा कोई संगी साथी
तुम मिले थे तो कुछ यूं लगा की जिन्दगी बदल जाएगी
पर क्या था मुझको को पता ये बद से बदतर हो जाएगी
अब अपने संग ये कविता है जो शिखा के शिखर तक पहुचायेंगी
पर सोचता हूँ अब किसके संग जाऊं किसके संग न जाऊं ...............मुझे खुद को नही पता.........................

तुझसे मिलने से पहले था खुश मै दुखी न था अब तुझसे मिलकर बदल सा गया
एक ख्वाब जो पहले न था आँखों में अब वही ख्वाब आँखों में बस सा गया
रात को नींद का न आना एक सबब बना दिन में सपने देखने आने का
पर कहते है सब दिन के सपने होते अधूरे कोई अर्थ रहा न आने का
तुझको न देखूं तो बेचैनी होती देखू तो खुद से ही घबरा जाते
क्या पता किस समय बंद हो जाये आँखे और तुम आँखों से ओझल हो जाते
फिर कैसे दूंढ कर तुझको अपनी आँखों के आगे लाऊं .....................मुझे खुद नही पता .................................