Monday, March 19, 2012


वीणा पाणी ध्यान धरू विनती ये मातु करूं 
रसना पे मेरी मातु आज आ विराजिये 
काज होवे पूर्ण सब दूर होवे दुःख अब 
छंद का प्रबंध अम्बे मेरे कर दीजिये 
तेरी ही दया से अम्ब ज्ञानी भरते है दंभ
ममता की छांव मातु बालक पे कीजिये 
लेखनी सशक्त बने क्रांति कारी काव्य लिखूं 
होऊ मै निशंक तब अंक मातु लीजिये 

चिदानंद शुक्ल (संदोह ) 

सिंहावलोकन सवैया छन्द रसना

रखना रसना रसधार भरी जगदम्ब दया इतनी करना 
करना सब पूर्ण मनोरथ भी पर दंभ सदा मन से हरना 
हरना रिपु का बल हे जननी धन के सब श्रोत सदा भरना 
भरना दिल में करुणा इतनी कटु बात नही रसना रखना 



चिदानंद शुक्ल (संदोह ) 

सवैया छन्द


हम भूल गये निज धर्म सभी सब पाप परायण में रत है 
अब पंडित वेद भुलाय दिए सबके अपने अपने मत है 
निज ज्ञान भुलाकर के अब ये अपने मिलि गाल बजावत है 
कलि क़ी महिमा धरि ध्यान सुनो अब सूतहि ब्रम्ह बतावत है 


चिदानंद शुक्ल (संदोह ) 

सवैया छन्द (होली के उपलक्ष्य में )


सब अंग गये जब भीग सखे अब रंग हमें जनि रंगत हो 
करते सब देख हसी हमरी तुम भंग चढ़ाकर झूमत हो 
जग की तुमको परवाह नही अब क्यों हमरी नहि मानत हो 
सरके चुनरी तन से हमरे तुम क्यों हुडदंग मचावत हो

सवैया छन्द

जबसे हिय श्याम बसे हमरे सब दोष हरे हमरे जिय के 
हम ग्वारन गोकुल गाँव रही अब ब्रम्हन पूजत है हमके 
जिनका मुनि भोग लगाय सखी तब मेटे क्षुधा अपने हिय के
विधना पछताय रहे अब तो हम क्यों न ग्वाल बने गोकुल के  


चिदानंद शुक्ल (संदोह )