Monday, September 26, 2011

एक प्रेम कहानी


आज मैंने सोचा की कुछ लिखा जाय ऐसा ही सोचकर मै एक कहानी  लिखने जा रहा हूँ जो तथ्यों पर आधारित नही है एक काल्पनिक और दार्शनिक व्यक्ति में बहुत  अंतर होता है हालाँकि कहानी कुछ ऐसी है जो आधुनिक परिवेश में रहते हुए रुढ़िवादी मानसिकता की प्रेम कहानी है जैसा की उम्र का प्रभाव होता है और इस उम्र में उपदेशात्मक कहानी की आशा करना एक जवान लड़के से बेईमानी होगी पर मैंने अपनी सामर्थ्य के अनुसार कोशिश कर रहा हूँ बात उन दिनों की है जब मै ग्यारहवीं कक्षा में था जुलाई का महीना था सबके अभिभावक गण अपने -२ बच्चो को विद्यालय ,कोचिंग ,कॉलेज में दाखिला करा रहे थे बात हमने भी मैट्रिक की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में पास कर ११ कक्षा में गया हमारे मित्र मंडली में गर्ल फ्रेंड की मनो बहार आ गयी हो हर दूसरा व्यक्ति अपनी-२ लड़की दोस्त के बारे में बातें करता और उस समय तक हमारे पास कोई ऐसा नही था क्योकि की  हमारा परिवेश अन्य लडको से अलग था हम सातवीं कक्षा तक हमारी शिक्षा गाँव में हुई हालाँकि हम जिस स्कूल में पढ़ते थे वह पर लड़के और लड़किया साथ ही पढ़ती थी परन्तु पता नही क्यों मुझे चिढ होती थी उस समय लड़कियों से न तो बात करना न ही उनकी तरफ देखना मुझे पसंद था
हमारे मित्र गण जिनमे कुछ हमारे गाँव के थे एक लड़की जो हमारे साथ पढ़ती थी उसके साथ मेरा नाम जोड़ने लगे मुझे बहुत गुस्सा आता था इन सब चीजों से क्योकि इसे मै पाप समझता था एक दिन उसने मुझसे कहा जब सब लोग तुम्हे मेरा नाम लेकर चिढाते है तो तुम मेरे दोस्त बन जाओ चिढ़ते क्यों हो दोस्ती करना बुरी बात तो नही आखिर हम लोग दोस्त तो बन ही सकते है मुझे उसकी बात इतनी बुरी लगी की मैंने उसके गाल पर एक झन्नाटेदार तमाचा मर दिया वह रोने लगी कक्षा के अन्य लड़किया जो उसकी दोस्त थीं वह स्कूल के प्रधानाचार्य के पास मेरी शिकायत लेकर गयी मुझे बुलाया गया और हमारे मास्टर साहब ने हमसे प्रश्न किया की क्यों तुमने इस लड़की को मारा तुम तो पंडित के लड़के हो तुम्हे तो इतना ज्ञान होना चाहिए की एक अबला पर हाथ नही उठाते लेकिन तब तक हमारे प्रिंसिपल महोदय ने मेरे ऊपर डंडो की बरसात कर दी उस लड़की को बुलाया गया उससे पूछा गया आखिर क्यों इन्होने तुम्हे मारा वह अत्यंत विन्रम भाव से उसने उत्तर दिया गलती मेरी थी मास्टर साहब और इन्हें छोड़ दिया जाये खैर मै उस दिन तो किसी तरह स्कूल में बिताया पर मेरा मन अब स्कूल में नही लगता था मै शहर आ गया
और यहा पर मेरे पिता जी ने हमारा दाखिला एक ऐसे कॉलेज में कराया जिसमे सिर्फ लड़के पढ़ते थे और हम आराम से पढाई कर रहे थे जैसा की मैंने आपको बताया की प्यार का भूत मेरे सर पर दसवीं की परीक्षा पास करने के बाद आया जब मेरे मित्र आपस में अपनी-२ गर्ल फ्रेंड के बारे में बात करें तो मुझे अंदर से ग्लानी हो की हमारे पास कोई नही है जब मै ग्यारहवीं में पहुंचा मेरे पिता जी ने शहर की एक प्रतिष्ठित कोचिंग में मेरा दाखिला करा दिया जब मै पहले दिन कोचिंग गया तो वह पर मुझे एक अत्यंत सुन्दर लड़की दिखाई दी जो की हमारे ही कक्षा में थी न जाने क्यों ऐसा लगा की हमारी तलाश पूरी हो गयी हमे यही चाहिए थी जो मिल गयी

मैंने उस दिन से मन में ठान लिया की हमे यही चाहिए अगले दिन जब मै कोचिंग पहुँचा तो वह भी आई थी और यह विडंबना ही थी प्रक्रति की हम दोनों की टाइमिंग एक थी और वह मेरे ही कक्षा में थी हम उस पूरा दिन उन्ही को देखते रहे क्या हिरनी जैसे आँखे थी उसकी गुलाबी गाल और ऊपर से लम्बी और घनी जुल्फें जो सभी का मन मोह लेती थी और खास कर हमारे लिये तो वह किसी ऊर्वशी से कम न थी अपितु उससे भी अधिक सुंदर अब मै पूरी तरह से होश को चुका था
उनको देख कर मेरे मन में यह आने लगा की मै किस प्रकार उससे बात करूँ क्यों कि मुझे इससे पूर्व कोई ऐसा अनुभव तो था नही जब दोपहर में घर आया भोजन करके हम सो गये लेकिन ख्वाबों में वही ख्यालों में वही और सपनों में भी वही ऐसा मेरे साथ पहली बार हुआ था इससे पहले अनेक लड़कियां मिली पर किसी के बारे इतनी उत्सुकता नही थी मेरे मन में पर एक डर ये भी लग रहा था की कही ऐसा तो नही वह हमारी जाति की न हो क्योंकि हम पहले ही बता चुके है की हम रहते
आधुनिक परिवेश में जरूर थे परन्तु हमारी सोच रूढ़िवादी विचारधाराओं वाली थी इस लिये हमने ईश्वर से यह प्राथना करनी आरम्भ कर दी की वह हमारी ही जाति की हो खैर जब मै अगले दिन कोचिंग गया तो मुझे लगा की अब कुछ करना चाहिए मैंने उसका नाम जानने के लिये उससे कहा कि कृपया अपनी नोट बुक हमे एक दिन के लिये दे जिससे जो मेरा पिछला कार्य रह गया है उसे मै पूरा कर सकूं उसने पहले तो मना कर दिया पर मेरे एक दोस्त के हस्तछेप करने के बाद उसने हमे अपनी नोट बुक दी मैंने जब उसका नाम पढ़ा तो मनो हमे कुबेर का खजाना मिल गया हो मै जैसा चाहता था वह तो बिलकुल वही थी यानि वह मेरी ही जाति कि थी अब मुझे लगा कि यदि इसे मुझे पाना है तो इसके लिये  देवादिदेव भगवन भोलेनाथ को प्रसन्न करना होगा मै तनमन धन से उनकी  पूजा में जुट गयाऔर अब इधर कोचिंग भी समय से पूर्व जाने लगा मै यही सोचता कि जितना अधिक समय हो सके सिर्फ उसको देखूं समय व्यतीत होता गया पर मै उससे अपने दिल कि बात नही कह पाया क्योंकि डर ये लगता था कि अगर कहा तो कहीं एस आना हो ये रो पड़े क्योंकि ऐसी एक दुर्घटना हमारी कोचिंग में हो चुकी थी मै जीवन भर तनहा रह सकता था पर उसे एक पल के लिये भी रुला नही सकता था शायद इसी डर के कारण मैंने उससे अपने दिल की बात नही कही और समय बीतता गया हम लोगों की राहें अलग -२ हो गयीं उसके बाद से हम आज तक उससे न मिल सके और प्रकृति की इसे विडम्बना ही कहेंगे हम लोग एक ही शहर में रहते हुए भी पिछले ८ वर्षों से नही मिले हालाँकि अब हमे यकीन है उनकी अपनी एक अलग दुनिया बस चुकी होगी पर हमे कोई गिला नही लेकिन ईश्वर से यह प्राथना है की मै उसे कभी न भूलूँ वह सदैव मेरे ह्रदय पर राज करती रहे

चिदानंद शुक्ल

1 comment:

  1. दोस्तों यह एक कहानी है यह कोई सच्ची घटना नही बस यु ही बैठे -२ मन में आया कोई कहानी लिखी जाये सो लिखा दी आप लोग बताये कैसी लगी चिदानंद शुक्ल

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