मुक्तक
जब भी आये हम उस पार दरिया के तुम इस पार होते हो
तुम्हारे थे तुम्हारे है बेकार की बातों में क्यों खार होते हो
माना की तनहा थे तुम तो हम भी महफिलो में न थे
संदोह हर दम साथ है क्यों इस तरह जार जार होते हो
चिदानंद शुक्ल (संदोह )
तुम्हारे थे तुम्हारे है बेकार की बातों में क्यों खार होते हो
माना की तनहा थे तुम तो हम भी महफिलो में न थे
संदोह हर दम साथ है क्यों इस तरह जार जार होते हो
चिदानंद शुक्ल (संदोह )
No comments:
Post a Comment