धानी चूनर ओढ़ सखी तुम कहाँ चली सब छोड़ सखी
छोड़ दिया बाबुल घर गोरी तोड़ दिए सारे बन्ध सखी
****************************** ******
संग साथ के खेलने वाले छूट रहे है सब तुझसे सखी
छूट रही तेरी चंचलता भी वह विचरण स्वछन्द सखी
डोली सज रही फूलों से तेरी कहार गाय रहे राग सखी
पिया मिलन में हो के बावरी भूल रही तू खुद को सखी
.............................. ...........................
धानी चूनर ओढ़ सखी तुम कहाँ चली सब छोड़ सखी
छोड़ दिया बाबुल घर गोरी तोड़ दिए सारे बन्ध सखी
****************************** ********
सिसक सिसक कर बापू रोवे बिलख बिलख कर मैय्या
पाँच बरष से बाट जोह रहे देखो द्वार खड़े हो तेरे भैय्या
.............................. ............................
सारी सखिया तुझे बुलाती क्या रूठ गयी हमसे हो सखी
धानी चूनर ओढ़ सखी तुम कहाँ चली सब छोड़ सखी
****************************** *******
सूना घर आँगन हुआ तेरा चिड़ियों ने चहकना बंद किया
बगिया के सब फूल सूख गये भवरों ने बहकना बंद किया
चाँद भी लगता फीका फीका तारों ने चमकना बंद किया
पड़ रहा कुहासा भादों में अब सूरज ने दमकना बंद किया
.............................. .............................. .
यह वीरान हुआ घर तब से जबसे तुम इसे छोड़ सखी
धानी चूनर ओढ़ सखी तुम कहाँ चली सब छोड़ सखी .
चिदानंद शुक्ल (संदोह )
छोड़ दिया बाबुल घर गोरी तोड़ दिए सारे बन्ध सखी
******************************
संग साथ के खेलने वाले छूट रहे है सब तुझसे सखी
छूट रही तेरी चंचलता भी वह विचरण स्वछन्द सखी
डोली सज रही फूलों से तेरी कहार गाय रहे राग सखी
पिया मिलन में हो के बावरी भूल रही तू खुद को सखी
..............................
धानी चूनर ओढ़ सखी तुम कहाँ चली सब छोड़ सखी
छोड़ दिया बाबुल घर गोरी तोड़ दिए सारे बन्ध सखी
******************************
सिसक सिसक कर बापू रोवे बिलख बिलख कर मैय्या
ढूंढ किनारा भैय्या रोवे भौजी लिपट लिपट कर मैय्या
हुई विदा जब इस घर से तुम ले गये तुझको तेरे सैंय्यापाँच बरष से बाट जोह रहे देखो द्वार खड़े हो तेरे भैय्या
..............................
सारी सखिया तुझे बुलाती क्या रूठ गयी हमसे हो सखी
धानी चूनर ओढ़ सखी तुम कहाँ चली सब छोड़ सखी
******************************
सूना घर आँगन हुआ तेरा चिड़ियों ने चहकना बंद किया
बगिया के सब फूल सूख गये भवरों ने बहकना बंद किया
चाँद भी लगता फीका फीका तारों ने चमकना बंद किया
पड़ रहा कुहासा भादों में अब सूरज ने दमकना बंद किया
..............................
यह वीरान हुआ घर तब से जबसे तुम इसे छोड़ सखी
धानी चूनर ओढ़ सखी तुम कहाँ चली सब छोड़ सखी .
चिदानंद शुक्ल (संदोह )
No comments:
Post a Comment