नशे में चूर हूँ मै नशे का गुलाम हूँ
कभी दौलत का नशा
तो कभी शोहरत का नशा
कभी मोहब्बत का नशा
कभी उल्फत का नशा
कभी तेरी वफाई का नशा
कभी बेवफाई का नशा
कभी मिलने का नशा
कभी बिछड़ जाने का नशा
मै सुनाता नशे का पैगाम हूँ
नशे में चूर हूँ नशे का गुलाम हूँ
कभी मय का नशा
कभी मयखाने का नशा
कभी जाम से पीने का नशा
कभी आँखों में जीने का नशा
कभी सिगरेट का नशा
कभी गुटखे का नशा
कभी यादों का नशा
कभी तेरे वादों का नशा
मै बनाता नशे के नित नए आयाम हूँ
नशे में चूर हूँ नशे का गुलाम हूँ
नशे से ही मानव का अस्तित्व है
नशा ही नशा नशा व्याप्त सर्वत्व है
नशे से ही मानव का विकाश है
हर ओर नशे का ही प्रकाश है
नशा ही नश्वर जीव की पहचान है
फिर क्यों हम नशे से बने अनजान है
नशा नाश की निशानी है
ये बाते अब हुई पुरानी है
नशा ही अब मेरी जिन्दगी
नशा ही अब मेरा मुकाम है
नशे में चूर हूँ मै नशे का गुलाम हूँ
चिदानन्द शुक्ल ( संदोह )