Sunday, August 19, 2012

पहचान हमारी मिटायेगें कैसे



माना की आप को कई दूसरे मिल गये हम जैसे
पर कुछ पहचान हमारी भी है उसे मिटायेगें कैसे

यूं कि इन रिश्तों में लचक तो बहुत होती है ऐ दोस्त
पर जो झुक गया आपके सामने उसे झुकाएंगें कैसे

पैसे का मोल बहुत है आपकी नज़रों में ये सच है
पर जो हमने आपको दिया खैरात में वो चुकायेंगें कैसे

आपकी महफ़िल बड़ी हो गयी और आप नामचीन हो गये
पर जो साथ थे तन्हाई में उनसे पीछा छुड़ायेगें कैसे

लगता है अब आप मिटा देना चाहते है सारे निशा मेरे
छाप मैंने जो छोड़ी है दिल पर तेरे उसे हटायेंगें कैसे

धोखा दिया है हमने या जागीर छीन ली तुम्हारी
गर ये सच भी है तो इसे सबको बतायेंगें कैसे

कभी दिलदार को छोड़ा एक अजनबी यार के लिए
संदोह ये बाते अपनी जुबाँ से किसी को सुनायेंगें कैसे

चिदानन्द शुक्ल (संदोह )

No comments:

Post a Comment