मै बनना चाहूं एक ऐसा कवि
जो लिखे बात अपने दिल की
अश्रु को स्याही बनाकर
भावनाओं की कलम से
मै लिख डालूँ बात
अब अपने दिल की
कीर्ति फैले हमारी ऐसे
जैसे किरणे फैलता रवि
मै बनना चाहूं एक ऐसा कवि
मै लिखूं ऐसी कविता
जिसमे कोई रस न हो
और न ही वह नीरस हो
न श्रंगारकी गाथा हो उसमे
न वीर रस का बखान हो
मेरा कवित्त वीभत्स और
करुण रस से भी अनजान हो
न ही बखान करूँ मै सोम की छवि
मै बनना चाहूं एक ऐसा कवि
मेरा किसी से कोई नाता न हो
कान्हा के सिवा कोई भाता न हो
न लिखूं कोई बाते मै राग द्वेष की
पर प्रेम की परिभाषा लिखूं
हर पल एक नई सीख सीखूं
मेरे नयनो मे बस जाये
मेरे श्याम सुंदर की छवि
मै बनना चाहूं एक ऐसा कवि
चिदानन्द शुक्ल ( संदोह )
जो लिखे बात अपने दिल की
अश्रु को स्याही बनाकर
भावनाओं की कलम से
मै लिख डालूँ बात
अब अपने दिल की
कीर्ति फैले हमारी ऐसे
जैसे किरणे फैलता रवि
मै बनना चाहूं एक ऐसा कवि
मै लिखूं ऐसी कविता
जिसमे कोई रस न हो
और न ही वह नीरस हो
न श्रंगारकी गाथा हो उसमे
न वीर रस का बखान हो
मेरा कवित्त वीभत्स और
करुण रस से भी अनजान हो
न ही बखान करूँ मै सोम की छवि
मै बनना चाहूं एक ऐसा कवि
मेरा किसी से कोई नाता न हो
कान्हा के सिवा कोई भाता न हो
न लिखूं कोई बाते मै राग द्वेष की
पर प्रेम की परिभाषा लिखूं
हर पल एक नई सीख सीखूं
मेरे नयनो मे बस जाये
मेरे श्याम सुंदर की छवि
मै बनना चाहूं एक ऐसा कवि
चिदानन्द शुक्ल ( संदोह )