Tuesday, May 1, 2012

चेहरे की किताब पर


चेहरे की किताब पर 

चेहरे की किताब पर 
बड़ी बहस चल रही है
सही कौन है
जो चेहरों को बेनकाब
करता है
सभी सीमाओं को लाँघ कर
या जो रहता है
सामाजिक दायरे में
कहना वह भी वही चाहता है
जो बातें कल हुई थी
मुशायरें में 

*********************":
लोग कवि को जादूगर कहते है
अश्लील शब्दों को भी जो
प्रयत्नशील होकर सामाजिक बना दे
आधुनिकता और उन्मुक्तता के
नाम पर मल्लिका शेरावत को
हेमा मालिनी बना दे
वही है कवि
उसी को कहते है जहां न
पहुंचे रवि वहाँ पहुचें कवि

***************************
पर कवि जो
समाज का दर्पण है
वही करता है
आज अपनी बात कहने को
यदि अश्लील शब्दों का प्रयोग
तो उसमें और राखी सावंत
में अंतर क्या है
वह जिस्म को अहिस्ता अहिस्ता
करती है नग्न
और वह कवि अपनी रूह को
अहिस्ता अहिस्ता
करता है नग्न 

**************************
और दोनों को हम
बड़े चाव से देखते और पढ़ते है
पर बोलने के समय अश्लीलता
का ढोंग रचते है
यह दोहरा चरित्र आखिर क्यों
हम दोष उनको देते है
यद्यपि दोषी हम स्वयं होते है
मानसिकता हमारी गंदी है
बाहर हम
पाश्चत्य सभ्यता का
विरोध करते है
घर में हम उसी का
प्रयोग करते है 


*************************
तो हम ऐसी रचनाओ पर
क्यों विचार करते है
जो हमें अश्लील दिखती है
हम उस फिल्म को क्यों
देखते है जो सवांद हीन है
आज जिन्दगी हम सही
वह गलत इसी में कट रही है
चेहरे की किताब पर
बड़ी बहस चल रही है ...............

चिदानंद शुक्ल (संदोह )

No comments:

Post a Comment