Thursday, June 28, 2012

हम जय की कामना करते है

हम जय की कामना करते है 
तो पराजय से क्यों भागते है 
बिना पराजय जय कैसे मिलेगी 
परा यानि उस शक्ति की जय
जो अनन्त है निराकार है 
जिसकी हम सर्वत्र बोलते है जय
और जिसकी सत्ता निर्विरोध
हम सभी स्वीकार करते है
हम जय की कामना करते है
तो पराजय से क्यों भागते है..........

चाहता हूँ हो सदैव पराजय
जिससे जय का लोभ न रहे
और उस ईश्वर के सम्मुख
कभी कोई क्षोभ न रहे
उस निराकार सर्वशक्तिमान
जिसने सदैव अपने कंठ में
हार का वरण किया
चाहे वह पुष्प हार हो या
वैजन्ती हार या फिर रहा
हो विषधर का हार
जय उसी को प्राप्त होती है
जो हार का वरण करते है
हम जय की कामना करते है
तो पराजय से क्यों भागते है.........

यह शब्द ऐसा है जिस पर
अनेकों कवित्त लिखे गये
सभी जय की कामना लें
प्रभु को समर्पित किये गये
रस से भरा मेरा काव्य हो
ऐसी कामना मै क्यूं करूं
जब हारना भी सत्य है
तो पराजय से क्यूं डरूं
संदोह शिकस्त की शिकन
फिर क्यों मस्तक पर धरते है
हम जय की कामना करते है
तो पराजय से क्यों भागते है..........

चिदानन्द शुक्ल (संदोह )

1 comment:

  1. मित्रों एक शब्द है पराजय जिससे हम अक्सर दूर भागते है और जो जीवन का एक सत्य है व्यक्ति ठीक उसी प्रकार अपराजित नही रह सकता जैसे जो जन्मा है वह अमर नही हो सकता इन्हीं भावों को समेटे मेरी एक रचना जो की पराजय पर लिखी है आप सब के विचार जानना चाहता हूँ

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