Thursday, June 28, 2012

हम तुम्हें भूल जायेंगें

तुम्हें क्या लगता है 
हम तुम्हें भूल जायेंगें 
या फिर ख्वाबों में तुम्हारे 
बन के सपना आयेंगें 
मै सपना नही 
हकीक़त हूँ 
अब छोडो उसको 
जो सपना था 
कभी नही अपना था 
जो अपना है 
उसे हो भूल बैठे
क्यों बेकार में
अपने चेहरे पर
जमा कर धूल बैठे
बना लो मुझको अपना
सारे शूल निर्मूल हो जायेंगें
तुम्हें क्या लगता है
हम तुम्हें भूल जायेंगें
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अब ये सब कैसे कहें
तुम ठहरे कुएँ के मेढक
जो अब तक कुँए में ही रहें
आओ हमारे साथ
तुम्हें जीने का एक
नया अंदाज मिलेगा
दरिया की क्या बात है
सागर का तुम्हें राज मिलेगा
पर कहीं यें मत सोचना
तुम्हारी पहचान
विलुप्त हो जाएगी
कुएं से निकलते ही
तुम्हारी गहराई
कम हो जाएगी
तुम्हारे साथ कई
जन्मों का रिश्ता
तय कर जायेंगें
तुम्हें क्या लगता है
हम तुम्हें भूल जायेंगें
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पर कहीं ऐसा न हो
आज हमें तेरा इंतजार है
कल तुम मेरी खबर लो
और मै खबर बन जाऊं
उस समय क्या होगा
सिर्फ एक अफ़सोस
जब हो जायेंगें सदा
के लिए हम खामोश
उस समय तुम सोचो ऐ काश
पहले ही अगर होता अहसास
बन जाती तेरा गीत
नही खोती अपना मीत
शायद यही वजह है
लिखने का यह गीत
भरोसा करो उस पर
है जो तुम्हारा मीत
संदोह साथ मिल
ये संगीत गाएंगें
तुम्हें क्या लगता है
हम तुम्हें भूल जायेंगें

चिदानंद शुक्ल (संदोह )

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