जाने किस पल बुला ले हमको खुदा मेरा
बहुत जख्म खाएं है उसके जुदा होने के बाद
अरे जितने दिन है साथ तेरे बात कर लें
गुमसुम सा रह जायेगा मेरे जाने के बाद
रौशन रक्खा है दिए ने जल के महफ़िल को
कीमत पता चलती चिराग की बुझने के बाद
जब वक्त अच्छा हो तो सभी साथ देते है
खोटा सिक्का याद है सब कुछ खोने के बाद
यहाँ अभी कितनी बाजी और हारेगा संदोह
सूरज भी नही रुकता दिन ढल जाने के बाद
चिदानन्द शुक्ल "संदोह "
बहुत जख्म खाएं है उसके जुदा होने के बाद
अरे जितने दिन है साथ तेरे बात कर लें
गुमसुम सा रह जायेगा मेरे जाने के बाद
रौशन रक्खा है दिए ने जल के महफ़िल को
कीमत पता चलती चिराग की बुझने के बाद
जब वक्त अच्छा हो तो सभी साथ देते है
खोटा सिक्का याद है सब कुछ खोने के बाद
यहाँ अभी कितनी बाजी और हारेगा संदोह
सूरज भी नही रुकता दिन ढल जाने के बाद
चिदानन्द शुक्ल "संदोह "
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