कछु प्रीत रही उनके मन में तबही वह मोहि बुलाय रहे
रख आँचल में हमरे सिर को निज केश कि छांव सुलाय रहे
सब भूल गये वह शूल सभी उनको जब बाँह झुलाय रहे
यह प्रेम अप्रितम है उनका नयना सुख आँसु रूलाय रहे
चिदानंद शुक्ल "सनदोह "
रख आँचल में हमरे सिर को निज केश कि छांव सुलाय रहे
सब भूल गये वह शूल सभी उनको जब बाँह झुलाय रहे
यह प्रेम अप्रितम है उनका नयना सुख आँसु रूलाय रहे
चिदानंद शुक्ल "सनदोह "
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