Thursday, June 28, 2012

जाने क्यों रूठे सजन हमार



सावन में साजन घर आवें जाने क्यों रूठे सजन हमार 
मोरनी नाँच रही मोर संग रिमझिम पड़े फुहार 

सजन बिना सावन है सूना का से करूं मै गुहार 
स्वाति बूँद को पपीहा तरसे पिऊ पिऊ करें पुकार
दिन तो कट जाये सखियों के संग रात न कटे हमार
बिना पिया के बिस्तर सूना अब आंखि न लगय हमार

पिया रूठि के हमसे चले गये सखि का से करी तकरार
सावन में साजन घर आवें जाने क्यों रूठे सजन हमार

घन घमंड कर गरजे जोर छावा अँधेरा है सब ओर
बिजुली चमक रही नभ भीतर जियरा में उठे हिलोर
सावन बीति गवा बिनु साजन भादों रात चढ़ी है घोर
हर रात अमावास जैसी लागे अब नहि संग चाँद चकोर

अँखियाँ तरस गयी अब सजनी चाँद निहार निहार
सावन में साजन घर आवें जाने क्यों रूठे सजन हमार

अंखियन झाई रोय रोय पड़ गयी जानेव नही पीर हमार
विरह व्यथा में घायल पंक्षी ज्यों करता करुण पुकार
घायल की गति घायल जाने का जग से करूं मनुहार
कहती मौत खड़ी द्वारे हँस अब तुम कर लेव संग हमार

संदोह पिया नही तुमरे आइहिहे अब मानो बात हमार
सावन में साजन घर आवें जाने क्यों रूठे सजन हमार

अँखिया बरसा कर सावन बीता ठिठुर ठिठुर कर अगहन
मधुमास में चलती मस्त बयरिया जल रहा हमरा मन
कहिगे थे जल्दी आवे का का निकर गये सौ योजन
आस में उनकी खुली रही अँखिया निर्जीव होइगा तन

पाती उनके नाम छोड़ के छोडि रहिन हम ई संसार
सावन में साजन घर आवें जाने क्यों रूठे सजन हमार

चिदानंद शुक्ल (संदोह )

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