अभी आज ही मैंने लिखी
एक कविता
पर कुछ शब्द उसमें ऐसे थे
जो सत्य से परे
कुछ ने तो तारीफ की
और कहा
शुक्ल जी जैसे बहा दी हो
ज्ञान सरिता
पर आलोचना भी हुई
कुछ को लगा जैसे शब्दों
को मरोड़ा गया हो और
कहा क्षमा सहित कहता हूँ
शुक्ल जी ये है समझ से परे
हमें आभास हुआ
थोडा सा निराश हुआ
फिर मन से आवाज आयी
जो हुआ अच्छा हुआ
मन को एकाग्र किया
शारदे का सुमिरन किया
और फिर से लिख रहा हूँ
अपनी पराजय की कविता
अभी आज ही मैंने लिखी
एक कविता
वह अहसास जिसकी
कामना की थी
अपनी कृति में
जय की कामना करते है
तो पराजय से क्यों डरते है
हाँ मुझे असीम आनंद मिला
पराजित हुआ
जब मेरा अहंकार
जब चोट दी किसी ने
अहम पर
आघात लगा की
मै श्रेष्ठ कवि हूँ
इस वहम पर
जय का लोभ क्यों होता
हार का क्षोभ क्यों होता
मुझे ज्ञान मिला
जो भाव तुम्हारे समझ सके
उसी को कहते कविता
अभी आज ही मैंने लिखी
एक कविता
ये मुझे अटल विश्वास है
मै गलत नही था
पर शायद समझा नही सका
जो शब्द थे मेरे उनको
मीठा बना नही सका
भाव को जब समझा नही सका
मुझे लगा कि शायद
व्यर्थ ही लिखी ऐसी कविता
अभी आज ही मैंने लिखी
एक कविता
चिदानन्द शुक्ल (संदोह )
एक कविता
पर कुछ शब्द उसमें ऐसे थे
जो सत्य से परे
कुछ ने तो तारीफ की
और कहा
शुक्ल जी जैसे बहा दी हो
ज्ञान सरिता
पर आलोचना भी हुई
कुछ को लगा जैसे शब्दों
को मरोड़ा गया हो और
कहा क्षमा सहित कहता हूँ
शुक्ल जी ये है समझ से परे
हमें आभास हुआ
थोडा सा निराश हुआ
फिर मन से आवाज आयी
जो हुआ अच्छा हुआ
मन को एकाग्र किया
शारदे का सुमिरन किया
और फिर से लिख रहा हूँ
अपनी पराजय की कविता
अभी आज ही मैंने लिखी
एक कविता
वह अहसास जिसकी
कामना की थी
अपनी कृति में
जय की कामना करते है
तो पराजय से क्यों डरते है
हाँ मुझे असीम आनंद मिला
पराजित हुआ
जब मेरा अहंकार
जब चोट दी किसी ने
अहम पर
आघात लगा की
मै श्रेष्ठ कवि हूँ
इस वहम पर
जय का लोभ क्यों होता
हार का क्षोभ क्यों होता
मुझे ज्ञान मिला
जो भाव तुम्हारे समझ सके
उसी को कहते कविता
अभी आज ही मैंने लिखी
एक कविता
ये मुझे अटल विश्वास है
मै गलत नही था
पर शायद समझा नही सका
जो शब्द थे मेरे उनको
मीठा बना नही सका
भाव को जब समझा नही सका
मुझे लगा कि शायद
व्यर्थ ही लिखी ऐसी कविता
अभी आज ही मैंने लिखी
एक कविता
चिदानन्द शुक्ल (संदोह )
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