क्यों करूं उन पर भरोसा जिनका साथ कुछ पल के बाद छूट जाये
कितने बसंत बीते और न जाने कितने औरबीत जाए
अब नही सहारा जीवन का किस पल पंक्षी उड़ जाये
जो साथ रहे बचपन से अब होने लगे पराये
अब जाऊं मै किसके संग कौन राह दिखलाये
तू भूल गया अपनी मंजिल सपनो में खोया रहता है
तू क्या है तेरा अस्तित्व ही क्या दर्पण में खोया रहता है
दर्पण में जो दिखता है वह तेरा प्रतिबिम्ब ही तो होता है
प्रतिबिम्ब को क्यों समझता सत्य वह तो धोखा होता है
धरा पर जब आये हम कुछ काम हमारा निश्चित था
खो गये दुनिया की भीड़ में हम जबकि जाना हमारा निश्चित था
जो सत्य मार्ग पर चलकर के हम कुछ ऐसा काम करें
अपनी मृत्यु को अमर बनाकर जग में अपना नाम करें
संदोह अब जान ले सत्य को तू कहे को भगा जाये
........न जाने कब जिंदगी की शाम हो जाये
lass="separator" style="clear: both; text-align: center;">

दोस्तों ये चन्द पंक्तियाँ है जो मैंने अपने दो दोस्तों की आकस्मिक मृत्यु से आहत होकर लिखी है
ReplyDeleteअगर इसमे कोई त्रुटि हो तो इसे क्षमा कीजिये गा
किसी कवि ने कहा है क्षमा बडन को चाहिए छोटन को उत्पात
तो मेरे प्रिय मित्रों मृत्यु एक अटल सत्य है जिस हम सब को मानना चाहिए जिस व्यक्ति ने जन्म लिया उसका मरना तय है
तो हम लोग कुछ समय उस ईश्वर के लिये भी दें जिसने हमे इस धरा पर भेज कर हमारे ऊपर अपनी असीम कृपा की है
संसार में आने के बाद व्यक्ति उस वादे को भूल जाता है जिस वादे को उसने धरा पर आने से पूर्व किया था और यहाँ आते ही वह सांसारिक बन्धनों में बंध जाता है उसे सत्य का ज्ञान करने के लिये यंहा पर भी उस परमपिता परमेश्वर ने हमे कई मौके दिए की हम उसे याद कर ले
पर हमे फुर्सत ही नही मिलती प्रेम से बोलो जय महाकाल की