Thursday, July 21, 2011

बिन डिब्बे की इंजन

बिन डिब्बे की इंजन हुए हम रहा न अपना कोई साथी
अलग अलग सब चले मुसाफिर संग न रहा कोई साथी
नेता अभिनेता मस्त मस्त जनता के हौसले पस्त पस्त
महंगाई कर रही अस्त व्यस्त पर बजट बना है मस्त मस्त
जनता रोये खून के आंसू मदमस्त फिरे है हाथी
बिन डिब्बे की इंजन हुए हम रहा न अपना कोई साथी

घोटाले हो रहे बराबर सरकारें हो रहीं बेखबर
खून का घूट पिए सारी जनता कहते मुझको कोई न सुनता
नेत्रत्व विहीन हुए सब तुम कौन सुनेगा तेरी
जो खुद की न कर पाए रक्षा तो फिर क्यों बजायी रणभेरी
दुल्हे तो सब बन ही गये है पर रहा न कोई बाराती
बिन डिब्बे की इंजन हुए हम रहा न अपना कोई साथी

जागो अब मेरे प्यारो बापू न फिर से आयेंगे
एक जुट होकर करो लड़ो लड़ाई दूर भगाओ तुम महंगाई
प्याज बढ़ा है ब्याज की तरह आलू की अब शामत आई
महंगाई सुरसा बन बैठी सुरसरि ( गंगा ) ने ली अब अंगडाई
नेता अभेनेता बन बैठे अभिनेता नेता बन बैठे
हाथी छोड़ जंगल को पार्को , चौरहो पर जा बैठे
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई बन जाओ सब सब के साथी
बिन डिब्बे की इंजन हुए हम रहा न अपना कोई साथी

चिदानंद शुक्ल ( संदोह )

No comments:

Post a Comment