Friday, July 22, 2011

नई बात



सुबह से शाम हुई शाम से रात हुई


मेरे दोस्तों तुम कहोगे कौन सी नई बात हुई


क्या नई बात से ही नई शुरआत होती है


नहीं ऐसा नही होता ऐसा होता तो


कल तक तुम मेरे पास थे आज भी मेरे पास होते


काश ऐसा होता कोई सूरज को रोकता


और उससे उसकी रोशनी के बारे में पूछता


चाँद को रोकता और उससे उसकी चांदनी के बारे में पूछता


मै तुम्हे रोकता और तुमसे अपने दिल की बात कहता


पर नही ऐसा मै नही कर सकता


लोग कहेंगे मै डरता हूँ ज़माने से


पर नही मै डरता हूँ उसकी रुसवाई से


जैसे कवि डरता है अपनी कविता से


शायर डरता है अपनी शायरी से


इन्हीं झंझावातो से जिंदगी दो से चार हुई


सुबह से शाम हुई शाम से रात हुई


मेरे दोस्तों तुम कहोगे कौन सी बात हुई






चिदानंद शुक्ल ( संदोह )

No comments:

Post a Comment