Thursday, July 21, 2011

आप की याद

ढल चूका सूरज आ गयी निशा तारों की बारात लेकर
खो गयी थी नींद मेरी लुट गया था चैन मेरा आप को ही याद कर
रात भर मई कष्ट सहते यू ही सपने बुनता रहा
कभी खवाबों में बुलाकर पर सामने उनको न पाकर
मै बिलख रोता रहा पर कौन सुनता आह मेरी
किसको थी चाह मेरी जो आकर के मुझको लगा लेता अपने गले
भुला देता मुझसे जो हुए थे सिकवे गिले

मुझको रोता देखकर बादल को रोना आ गया
पूर्णिमा की पूनम रात को घनघोर अन्धेंरा छा गया
घनघोर बारिश होने लगी और बिजली कड़की तेज से
मानों प्रलय ही आ रही हो उड़ पवन के वेग से
मुझको ऐसा लगने लगा वो बारिश से जग के आ गयी
पर ये मेरा वहम था वो न आये उनकी याद फिर से आ गयी

ढल चुकी थी निशा उगने लगा सूरज यादों की बदली छट गयी
मै सोचता हूँ आज भी वो रात बिन महबूब कैसे कट गयी
मै शहरा से निकल चुका था उनकी यांदो का गुबार लेकर
ढल चुका सूरज आ गयी निशा तारों की बारात लेकर ................

चिदानंद शुक्ल ( संदोह )

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