क्यों करूं उन पर भरोसा जिनका साथ कुछ पल के बाद छूट जाये
कितने बसंत बीते और न जाने कितने औरबीत जाए
अब नही सहारा जीवन का किस पल पंक्षी उड़ जाये
जो साथ रहे बचपन से अब होने लगे पराये
अब जाऊं मै किसके संग कौन राह दिखलाये
तू भूल गया अपनी मंजिल सपनो में खोया रहता है
तू क्या है तेरा अस्तित्व ही क्या दर्पण में खोया रहता है
दर्पण में जो दिखता है वह तेरा प्रतिबिम्ब ही तो होता है
प्रतिबिम्ब को क्यों समझता सत्य वह तो धोखा होता है
धरा पर जब आये हम कुछ काम हमारा निश्चित था
खो गये दुनिया की भीड़ में हम जबकि जाना हमारा निश्चित था
जो सत्य मार्ग पर चलकर के हम कुछ ऐसा काम करें
अपनी मृत्यु को अमर बनाकर जग में अपना नाम करें
संदोह अब जान ले सत्य को तू कहे को भगा जाये
........न जाने कब जिंदगी की शाम हो जाये
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