Sunday, November 13, 2011

मै अपने गम सारे

तुमसे मिलकर भूल गया हूँ मै अपने गम सारे
छोड़ आये सारे जग झगडे आ गये तेरे द्वारे 
अब नही रहा डर मौत का अपनी और न ही रही तन्हाई 
मंजिल चलकर दर पर आयी क्या है तेरी प्रभुताई 
क्यों स्नेह करें हम जग से जो स्वार्थ बस प्रीत निभाई 
राधा को प्रेम दिया है तुमने मीरा को भक्ति प्रदान किया 
अर्जुन को है सखा बनाया भीष्म के लिये प्रण त्याग दिया 
दास बना लो कान्हा हमको जग वालो ने हमे ठुकरा दिया 
सभी ओर से ठोकर पड़ रही अब साथ छोड़ गये सारे 
तुमसे मिलकर भूल गया हूँ मै अपने गम सारे

प्रीत की रीत सारा जग भूला लक्ष्मी पति बिसराई
लक्ष्मी को उर में है बसाया भूल गये प्रभु की प्रभुताई 
बचपन बीता खेलकूद कर तिरिया संग बीती तरुणाई
कान्हा को तू मीत बना ले उनसे अपनी प्रीत निभा ले 
धर्म को अपना कर्म बना ले सत्य का मर्म समझ ले 
पीर पराई जानी न तुमने तेरी व्यथा कौन सुन ले
राधा रामन हरि गोविन्द जय बोलो मिलकर सारे 
तुमसे मिलकर भूल गया हूँ मै अपने गम सारे
चिदानन्द शुक्ल ( संदोह )

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