Sunday, November 13, 2011

अश्क बहाते रहे हम

तुम्हारे आने के इंतजार में तमाम रात जगते रहे हम 
रात के अंधेरों में भी सुबह का भरम पालते रहे हम 

और जब सुबह हुई मेरे जीवन की और वह आये 
उस वक्त गहरी नींद के आगोश में जा चुके थे हम 

ख्वाबों की मेरी दुनिया अब हकीकत बन चुकी थी
सपनों में अपनी स्वप्न सुन्दरी के संग रह रहे हम 

अब नही रहा गिला किसी के आने न आने का 
मुझको जो तुमसे मिला खुश हो गये उसी में हम 

एक गाँठ जो पड़ गयी थी हमारे तुम्हारे बीच में 
उस गाँठ को सुलझाने में ताउम्र उलझे रहे हम 

हर महफिल में तलाशती उनको मेरी नज़रें 
आये महफिल में जब तन्हाई में जा चुके थे हम 

कौन कहता है की आशिकी में जुदाई नही होती
संदोह आशिकी में अब तक अश्क बहाते रहे हम 

चिदानन्द शुक्ल ( संदोह )

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