तुम्हारे आने के इंतजार में तमाम रात जगते रहे हम
रात के अंधेरों में भी सुबह का भरम पालते रहे हम
और जब सुबह हुई मेरे जीवन की और वह आये
उस वक्त गहरी नींद के आगोश में जा चुके थे हम
ख्वाबों की मेरी दुनिया अब हकीकत बन चुकी थी
सपनों में अपनी स्वप्न सुन्दरी के संग रह रहे हम
अब नही रहा गिला किसी के आने न आने का
मुझको जो तुमसे मिला खुश हो गये उसी में हम
एक गाँठ जो पड़ गयी थी हमारे तुम्हारे बीच में
उस गाँठ को सुलझाने में ताउम्र उलझे रहे हम
हर महफिल में तलाशती उनको मेरी नज़रें
आये महफिल में जब तन्हाई में जा चुके थे हम
कौन कहता है की आशिकी में जुदाई नही होती
संदोह आशिकी में अब तक अश्क बहाते रहे हम
चिदानन्द शुक्ल ( संदोह )
रात के अंधेरों में भी सुबह का भरम पालते रहे हम
और जब सुबह हुई मेरे जीवन की और वह आये
उस वक्त गहरी नींद के आगोश में जा चुके थे हम
ख्वाबों की मेरी दुनिया अब हकीकत बन चुकी थी
सपनों में अपनी स्वप्न सुन्दरी के संग रह रहे हम
अब नही रहा गिला किसी के आने न आने का
मुझको जो तुमसे मिला खुश हो गये उसी में हम
एक गाँठ जो पड़ गयी थी हमारे तुम्हारे बीच में
उस गाँठ को सुलझाने में ताउम्र उलझे रहे हम
हर महफिल में तलाशती उनको मेरी नज़रें
आये महफिल में जब तन्हाई में जा चुके थे हम
कौन कहता है की आशिकी में जुदाई नही होती
संदोह आशिकी में अब तक अश्क बहाते रहे हम
चिदानन्द शुक्ल ( संदोह )
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