तेरे बारे में जब लिखने बैठू कलेजा काँप जाता है
कलम साथ न देती हमारा हाथ मेरा काँप जाता है
मै सोचता हूँ तेरे हुस्न की तारीफ लिखूं या गुरूर
यह सोचते -सोचते हूँ जाता हूँ दिल के हांथों मजबूर .
तेरी तारीफ में क्या लिखूं लोग जलने लगेगें मुझसे
गर लिखता हूँ तेरी बेवफाई तो रहम खाने लगेगें मुझसे
जिक्रे मोहब्बत होता है जब भी तेरा किस्सा याद आता है
तेरे पहलू बे बैठ कर जो ख्वाब देखे थे वो मंजर याद आता है
तेरे बारे में जब लिखने बैठू कलेजा काँप जाता है
तेरे हुस्न का जलवा ही था जिसने हमे आशिक बना दिया
तुझसे मिलने की दीवानगी ने हमे काफिर बना दिया
अब न ही मेरा कोई खुदा न ही उसकी कोई खुदाई है
मेरे नसीब में तो बस अब अपने यार की जुदाई है
कहते थे हम उनसे कोई छीन न पायेगा हमसे तुम्हें
बेबस हो गये अपने ही प्यार से जो तन्हा छोड़ गया हमें
गुजरता हूँ जब उनकी गलियों से वो खंजर याद आता है
समुन्दर न डुबो पाया जिसको वह दरिया में डूब जाता है
तेरे बारे में जब लिखने बैठू कलेजा काँप जाता है
अब तो लगता नही मुझको की हम फिर से मिल पायेंगें
पर क्या हम बिना उनके इस जहां में अकेले रह पायेंगे
वादा तो था तुम्हारा चन्द मिनटों में लौट आने का
हो गये वर्षों न आये तुम पता भूल गये मेरे ठिकाने का
दिल में लगी आग को बुझाते -बुझाते सूख गया आँखों का समुन्दर
तुम आ जाते तो भर जाती आँखे मेरी देख लेता तुम्हे जी भरकर
संदोह न आना इस राह में फिर से राही रास्ता भूल जाता है
निकला था सत्य खोज में और मिलते ही उनके खुद को भूल जाता है
तेरे बारे में जब लिखने बैठू कलेजा काँप जाता है
चिदानन्द शुक्ल ( संदोह )
कलम साथ न देती हमारा हाथ मेरा काँप जाता है
मै सोचता हूँ तेरे हुस्न की तारीफ लिखूं या गुरूर
यह सोचते -सोचते हूँ जाता हूँ दिल के हांथों मजबूर .
तेरी तारीफ में क्या लिखूं लोग जलने लगेगें मुझसे
गर लिखता हूँ तेरी बेवफाई तो रहम खाने लगेगें मुझसे
जिक्रे मोहब्बत होता है जब भी तेरा किस्सा याद आता है
तेरे पहलू बे बैठ कर जो ख्वाब देखे थे वो मंजर याद आता है
तेरे बारे में जब लिखने बैठू कलेजा काँप जाता है
तेरे हुस्न का जलवा ही था जिसने हमे आशिक बना दिया
तुझसे मिलने की दीवानगी ने हमे काफिर बना दिया
अब न ही मेरा कोई खुदा न ही उसकी कोई खुदाई है
मेरे नसीब में तो बस अब अपने यार की जुदाई है
कहते थे हम उनसे कोई छीन न पायेगा हमसे तुम्हें
बेबस हो गये अपने ही प्यार से जो तन्हा छोड़ गया हमें
गुजरता हूँ जब उनकी गलियों से वो खंजर याद आता है
समुन्दर न डुबो पाया जिसको वह दरिया में डूब जाता है
तेरे बारे में जब लिखने बैठू कलेजा काँप जाता है
अब तो लगता नही मुझको की हम फिर से मिल पायेंगें
पर क्या हम बिना उनके इस जहां में अकेले रह पायेंगे
वादा तो था तुम्हारा चन्द मिनटों में लौट आने का
हो गये वर्षों न आये तुम पता भूल गये मेरे ठिकाने का
दिल में लगी आग को बुझाते -बुझाते सूख गया आँखों का समुन्दर
तुम आ जाते तो भर जाती आँखे मेरी देख लेता तुम्हे जी भरकर
संदोह न आना इस राह में फिर से राही रास्ता भूल जाता है
निकला था सत्य खोज में और मिलते ही उनके खुद को भूल जाता है
तेरे बारे में जब लिखने बैठू कलेजा काँप जाता है
चिदानन्द शुक्ल ( संदोह )
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