Sunday, November 13, 2011

एक लड़की मेरे जीवन में क्यों बार -बार है आती

एक लड़की मेरे जीवन में क्यों बार -बार है आती 
जब भूल चूका हूँ मै उसको फिर याद क्यों उसकी आती 
मैंने छोड़ दिए सारे वह रस्ते जो उसकी याद दिलाते थे 
जला दिए वह सारे पन्नें जो उनके नाम से आते थे 
मैंने जला दिया उस दिल को जिसमे तुम रहते थे 
घर फूक तमाशा देखते आशिक ऐसा सब कहते थे 
पर जब होते है सकूँ में हम वह चैन चुराने आ जाती 
एक लड़की मेरे जीवन में क्यों बार -बार है आती 

अब क्या करे बता दो तुम सब कैसे उसको हम भूले 
सावन में जब पड़ते झूले बिन सजना के कैसे झूले 
हम जाते है मयखाने गम अपना दूर मिटाने को 
मय में आ जाती तस्वीर है उनकी मेरा दर्द बढ़ाने को 
रात में जब सोते है हम तो वह सपना बनकर आ जाती 
एक लड़की मेरे जीवन में क्यों बार -बार है आती 

जब लिखने बैठूं मै कुछ भी उसकी कविता बन जाती 
उसकी झील सी गहरी आँखों में ये कश्ती मेरी डूब जाती 
अब तो हैरान हूँ क्यों नही भूल पता हूँ उन्हें भूलकर 
जो चले गये थे मुझे इस जहाँ में तनहा छोडकर 
कविता की नायिका वो बनकर मेरी कविता में आ जाती 
एक लड़की मेरे जीवन में क्यों बार -बार है आती 

चिदानन्द शुक्ल ( संदोह )

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