सावन में बालम घर आवत पर रूठ गये बालम हमार
मोर संग नाच रही मोरनी रिमझिम पड़े फुहार
पिया बिना सावन है सूना का से करूँ गुहार
स्वाति बूँद को पपीहा तरसे पिऊ पिऊ करे पुकार
दिन तो कट जाये सखियन के संग रात न कटे हमार
घायल की गति घायल जाने का जग से करूं मनुहार
सावन में बालम घर आवत पर रूठ गये बलम हमार
घन घमंड कर गरजे घोर छाया अंधकार चहु ओर
दामिनी दमके नभ के भीतर जियरा में उठे हिलोर
सावन बीत गया बिनु साजन भादों रात घनघोर
हर रात अमावास की लगती अब नही संग चाँद चकोर
सेज पड़ी पिया बिनु सूनी आँख न लगय हमार
पिया रूठ कर हमसे चले गए का से करी तकरार
सावन में बालम घर आवत पर रूठ गये बलम हमार
आखियाँ बरसाकर सावन बीते ठिठुर -ठिठुर कर अगहन
मधुमास की मस्त बयरिया से जल गया मेरा मन
आय नही अब तक मेरे दिलबर कब तक बहलाऊ मन
पिय की आस में खुली रही अखियाँ निर्जीव हो गया तन
मौत खड़ी द्वारे पर हसती कर लेउ संग अब हमार
संदोह विरह व्यथा में घायल पक्षी करता करुण पुकार
सावन में बालम घर आवत पर रूठ गये बलम हमार
चिदानन्द शुक्ल (संदोह)
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