तुम नज़र बचा के निकलते हो तो निकलो
मै आईना हूँ अपनी जिम्मेदारी निभाता हूँ
मुझे नज़र भर भी नही देखते हो ऐ संग दिल
खौफ खाओ खुदा का मै तुमसे मोहब्बत करता हूँ
करते हो तुम इनकार मेरी मोहब्बत से
पर मै तो तुझे देखकर ही जिया करता हूँ
न छोड़ कर जाओ इस मझधार में हमें
मै तो तुमको ही अपना नखुदा समझता हूँ
बड़ी मुश्किल होती है जामने के संग चलने में
हर वक्त तेरे साथ की तलाश किया करता हूँ
बारिश होगी तू आशिया में तुम्हे आना ही पड़ेगा
यह सोच कर हर वक्त आखों को बरसाया करता हूँ
अब नही रहा गम तुझसे न मिल पाने का
हर शख्स में अब तो तेरे दीदार किया करता हूँ
अब चंद पल बचे है मेरी जिन्दगी के
हर पल को खुशनुमा बना के जिया करता हूँ
तू अब मुझे नही पहचानना चाहते तो न पहचानो
मै खुद को न भूलने दूं तुम्हे यह अपनी जिम्मेदारी समझता हूँ
चिदानन्द शुक्ल (संदोह )
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