Friday, August 5, 2011

शामें अवध



लखनऊ तेरे नजारों का अज़ब आलम है
शेख रूमानी किनारों का अज़ब आलम है
लखनऊ शहर की रौनक है राज़दां है तू
नाज़नी जलपरीं शरबतीं शमां है तू
तेरे पहलू में महल है बाग है मीनारें है
कामदनी के बनावट में टांके सितारें है
कभी पानी में नगीनों की आब रहती थी
एक नशा था जैसे शराब बहती थी
हाय उससे कोई पूछे हुस्ने लाजवाब तेरा
जिस किसी ने भी देखा हो शबाब तेरा
देख कर न भूल पायेगा तेरी शाम कोई
अवध की शाम या छलका हुआ जाम कोई
चिदानंद ( संदोह )

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