मेरे महबूब जब तुम सामने आते हो मै खुद को भूल जाता हूँ
बहुत करता हूँ कोशिश मै संभलने की पर संभालना भूल जाता हूँ
तुम्हारे आने से फिजां में कुछ बदलाव आते है
जो छाई धूप होती है तो बदल घिर ही आते है
तुम्हारे आने पर पतझर बसंत हो जाता है
ये सूखे नयनो में बादल उमड़ आता है
न जाने क्या जादू है तेरी निगांहो में
मुरझाये फूल भी खिल उठते है बागों में
तुझसे मिलकर जो सकूं मिलता है ऐ मेरे हमदम
मै दुनिया के सभी ऐसो आराम भूल जाता हूँ
................ मै खुद को भूल जाता हूँ
तेरा दिल में जब भी कोई ख्याल आता है
बरबस ही आँखों से समुन्दर उतर ही आता है
मै रोक नही पाता इसको आँखों से गिर जाता है
एक अदद अश्रु मेरे सब्र को मिटा जाता है
तेरी वो मासूमियत भरी निगाहें जब भी किसी ओर उठती
हर कोई बेचैन हो उठता जब तू किसी राह से गुजरती
पर आते हो जब तुम मेरे सपनों में बनकर मेरे महबूब
होते है अनेको प्रश्न जिनको पूछना मै भूल जाता हूँ
..............................मै खुद को भूल जाता हूँ
मै मुस्कुराता हूँ की न जाने कोई मेरे गम के बारे में
टूट चुका है आशियाँ मेरा न जाने कोई इसके बारे में
ये दुनिया बड़ी जालिम है हर गम में मज़ा ढूंढ़ लेती है
न चाहो इसको कुछ भी बताना फिर भी फ़साना ढूंढ़ लेती है
संदोह अब डर लगता है मरने में कहीं वो बदनाम न हो जाये
मै करता हूँ तुझसे प्यार ये खबर सरे आम न हो जाये
ये होते है ऐसे अनुत्तरित प्रश्न जिनमे मै झूल जाता हूँ
....................... .मै खुद को भूल जाता हूँ
चिदानंद शुक्ल ( संदोह )
बहुत करता हूँ कोशिश मै संभलने की पर संभालना भूल जाता हूँ
तुम्हारे आने से फिजां में कुछ बदलाव आते है
जो छाई धूप होती है तो बदल घिर ही आते है
तुम्हारे आने पर पतझर बसंत हो जाता है
ये सूखे नयनो में बादल उमड़ आता है
न जाने क्या जादू है तेरी निगांहो में
मुरझाये फूल भी खिल उठते है बागों में
तुझसे मिलकर जो सकूं मिलता है ऐ मेरे हमदम
मै दुनिया के सभी ऐसो आराम भूल जाता हूँ
................ मै खुद को भूल जाता हूँ
तेरा दिल में जब भी कोई ख्याल आता है
बरबस ही आँखों से समुन्दर उतर ही आता है
मै रोक नही पाता इसको आँखों से गिर जाता है
एक अदद अश्रु मेरे सब्र को मिटा जाता है
तेरी वो मासूमियत भरी निगाहें जब भी किसी ओर उठती
हर कोई बेचैन हो उठता जब तू किसी राह से गुजरती
पर आते हो जब तुम मेरे सपनों में बनकर मेरे महबूब
होते है अनेको प्रश्न जिनको पूछना मै भूल जाता हूँ
..............................मै खुद को भूल जाता हूँ
मै मुस्कुराता हूँ की न जाने कोई मेरे गम के बारे में
टूट चुका है आशियाँ मेरा न जाने कोई इसके बारे में
ये दुनिया बड़ी जालिम है हर गम में मज़ा ढूंढ़ लेती है
न चाहो इसको कुछ भी बताना फिर भी फ़साना ढूंढ़ लेती है
संदोह अब डर लगता है मरने में कहीं वो बदनाम न हो जाये
मै करता हूँ तुझसे प्यार ये खबर सरे आम न हो जाये
ये होते है ऐसे अनुत्तरित प्रश्न जिनमे मै झूल जाता हूँ
....................... .मै खुद को भूल जाता हूँ
चिदानंद शुक्ल ( संदोह )
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