Thursday, October 20, 2011

मै नशे का गुलाम हूँ

नशे में चूर हूँ मै नशे का गुलाम हूँ 
कभी दौलत का नशा 
तो कभी शोहरत का नशा 
कभी मोहब्बत का नशा
 कभी उल्फत का नशा 
कभी तेरी वफाई का नशा 
कभी बेवफाई का नशा 
कभी  मिलने का नशा
 कभी बिछड़ जाने का नशा 
मै सुनाता नशे का पैगाम हूँ 
नशे में चूर हूँ  नशे का गुलाम हूँ 

कभी मय का नशा 
कभी मयखाने का नशा 
कभी जाम से पीने  का नशा
कभी आँखों में जीने  का नशा 
कभी सिगरेट का नशा
 कभी गुटखे का नशा 
कभी  यादों का नशा
 कभी तेरे वादों का नशा  
मै बनाता नशे के नित नए आयाम हूँ 
नशे में चूर हूँ  नशे का गुलाम हूँ 

नशे से ही मानव का अस्तित्व है 
नशा ही नशा नशा व्याप्त सर्वत्व है 
नशे से ही मानव का विकाश है 
हर ओर नशे का ही प्रकाश है 
नशा ही नश्वर जीव की पहचान है 
फिर क्यों हम नशे से बने अनजान है
नशा नाश की निशानी है 
ये बाते अब  हुई पुरानी है 
नशा ही अब मेरी जिन्दगी 
नशा ही अब मेरा मुकाम है 
नशे में चूर हूँ मै नशे का गुलाम हूँ 


चिदानन्द शुक्ल ( संदोह )  

1 comment:

  1. मित्रों लोग नशे को नाश की निशानी कहते है क्या ऐसा कोई है इस जहाँ में जो नशा नही करता है किसी को दौलत का किसी को मोहब्बत का हर किसी न किसी को कोई नाश होता जरूर है तो फिर हम नशे को इतनी हे द्रष्टि से क्यों देखते है शायद यही विचार आये मन में तो इसे कविता का रूप देने की कोशिश की है आप लोगों के विचार जानना चाहते है की यह नशा कैसा लगा चिदानन्द शुक्ल ( संदोह )

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