Wednesday, October 12, 2011

अपने दर्द को हम अपनी लेखनी में उतार दिया करते है

अपने दर्द को हम अपनी लेखनी में उतार दिया करते है
लिखने को शब्द नही होते पर फिर भी लिख दिया करते है

कोशिश करता हूँ मै जब भी कोई नई दास्ताँ लिखने की
हर बार दiस्ताने मोहब्बत लिख दिया करते है

जब भी नज़रें मिलाता हूँ अपने महबूब से
हर बार वो अपनी नज़रें झुका लिया करते है

जब नजर नही मिलती उनसे तो इकरार कैसे होगा
दिन रात मेरे यार हम यहीं सोचा करते है

हमारे दिल में क्या है ये तुम नही समझ पाते
कहते हो बड़े शौक से हम प्यार तुमसे करते है

कभी तो गुजरेंगे मेरे महबूब इस राह से
हर रोज यह सोचकर पलकें बिछाया करते है

था इरादा मेरा इस जहा को नाप लेने का
पर हर रोज तेरी राह में भटका करते है

गर मुझसे कोई खता हो दोस्तों माफ़ करना
बस आपकी मेहरबानियों से कुछ लिख लिया करते है

हम इस काबिल नही है संदोह लोग मुझसे प्यार करें
पर खुदा की इनायत है हम पर की लोग प्यार करते है



चिदानंद शुक्ल ( संदोह )

2 comments:

  1. अपने दर्द को हम अपनी लेखनी में उतार दिया करते है
    लिखने को शब्द नही होते पर फिर भी लिख दिया करते है


    Bahut Sunder Panktiyan....

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  2. मोनिका जी बहुत -२ आभार आपका

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