यह ब्लॉग मै अपनी अंतर आत्मा की आवाज पर लिख रहा हूँ की ब्लॉग के शीर्षक के बारे में बताये शिखा से शिखर तक की यात्रा हालाँकि दोनों ही शब्द का मतलब ऊंचाई से सम्बंधित है लेकिन शिखा से शिखर पर चढ़ने में एक अलग आनंद की अनुभूति होती है
Monday, March 19, 2012
सवैया छन्द
जबसे हिय श्याम बसे हमरे सब दोष हरे हमरे जिय के हम ग्वारन गोकुल गाँव रही अब ब्रम्हन पूजत है हमके जिनका मुनि भोग लगाय सखी तब मेटे क्षुधा अपने हिय के विधना पछताय रहे अब तो हम क्यों न ग्वाल बने गोकुल के
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