पिय मोर कहाँ अब जाय रह्यो
घन घोर घमंड किये बरसे
भय लागत है अब तो हमको
नहि जाउ पिया अपने घर से
बिजुली यह जोरन से तडपे
हिय मोर पिया नहि है हरषे
धन की अब है मोहि चाह नहीं
समझाय रही पिय को तबसे
चिदानंद शुक्ल (संदोह )
घन घोर घमंड किये बरसे
भय लागत है अब तो हमको
नहि जाउ पिया अपने घर से
बिजुली यह जोरन से तडपे
हिय मोर पिया नहि है हरषे
धन की अब है मोहि चाह नहीं
समझाय रही पिय को तबसे
चिदानंद शुक्ल (संदोह )
एक दुर्मिल सवैया लिखने का प्रयास किया है मित्रों और मैने प्रथम बार लिखा है कोई सवैया छंद अगर कोई त्रुटी रह गयी हो तो विद्वत जनों से अनुरोध है की वह
ReplyDeleteअवश्य मार्गदर्शन करें हमें अपार प्रसनन्ता होगी चिदानन्द शुक्ल (संदोह )