Saturday, February 18, 2012

पिय मोर कहाँ अब जाय रह्यो

पिय मोर कहाँ अब जाय रह्यो

घन घोर घमंड किये बरसे 

भय लागत है अब तो हमको

नहि जाउ पिया अपने घर से

बिजुली यह जोरन से तडपे

हिय मोर पिया नहि है हरषे

धन की अब है मोहि चाह नहीं

समझाय रही पिय को तबसे 



चिदानंद शुक्ल (संदोह )

1 comment:

  1. एक दुर्मिल सवैया लिखने का प्रयास किया है मित्रों और मैने प्रथम बार लिखा है कोई सवैया छंद अगर कोई त्रुटी रह गयी हो तो विद्वत जनों से अनुरोध है की वह

    अवश्य मार्गदर्शन करें हमें अपार प्रसनन्ता होगी चिदानन्द शुक्ल (संदोह )

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