Sunday, January 15, 2012

तू गैर की बाहों में भी होती है तो मुझे अब जलन नही होती .


अब तो आदत सी हो गयी है हर शय तन्हा रहने की 
अब तेरे पास होने से भी ये तन्हाई मुझसे दूर नही होती ...१

जिक्र जिसका भी आये तेरे नाम के संग महफ़िल में 
पत्थर दिल हो गया हूँ मै अब इसमें हलचल नही होती .....२

सीख लिया है हमने भी अब तेरे बिन रहना ऐ महबूब 
हमें कभी भी तेरे प्यार की  कमी महसूस नही होती .......३

बहुत दिनों तक तूने पिलायी हमें अपने चश्मों से शराब
अब तू नही पास मेरे फिर भी मय की जरूरत नही होती......४

तेरे हुस्न के नशे में मगरूर होकर सब कुछ गवां दिया 
खुद से फिर वह गुस्ताखी करने की हिम्मत नही होती ........५

अब तो  वर वक्त तेरे जिस्म से बेवफाई की बू आती  
तेरी जुल्फों के घने छाये में भी मुझे राहत नही मिलती.........६

तेरी बेवफाई को तो अब तेरी कातिल अदा समझा है संदोह 
तू गैर की बाहों में भी होती है तो मुझे अब जलन नही होती ......७

                                                              चिदानन्द शुक्ल (संदोह )

1 comment:

  1. मित्रों कई दिनों से कोई रचना नही लिख पा रहा था आज कई दिनों के प्रयास के बाद एक ग़ज़ल लिखी है आप लोगों के विचार जानना चाहता हूँ ...................?
    चिदानन्द शुक्ल (संदोह )

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